समाज के सभी वर्ग तक पहुंचने के लिए बनाया गया था वेब पेज- CJI
सीजेआइ डी.वाई.चंद्रचूड़ ने गुरुवार को बताया कि इस साल केशवानंद भारती मामले के फैसले के 50 साल पूरे हुए हैं। फैसला 24 अप्रेल, 1973 को सुनाया गया था। समाज के बड़े वर्ग तक फैसला पहुंचाने के लिए भारतीय भाषाओं में फैसले का अनुवाद किया गया है, क्योंकि भाषा की बाधाएं लोगों को अदालत के काम को समझने से रोकती हैं। इन भाषाओं में हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, उडिया, कन्नड़, गुजराती, बांग्ला, मराठी और असमिया शामिल हैं। गौरतलब है कि केशवानंद भारती का मुकदमा नानीभाई पालकीवाला, फली एस. नरीमन और सोली सोराबजी के सहयोग से लड़ा गया था।
3 साल चला मुकदमा
तत्कालीन केरल सरकार भूमि सुधार कानून-1969 के तहत कासरगोड के एडनीर मठ पर कब्जा करना चाहती थी। वहां के शंकराचार्य केशवानंद श्रीपदगलवरु ने इसका विरोध किया। फरवरी, 1970 में उन्होंने मुकदमा दायर कर केरल सरकार के कदम को धर्म, संपत्ति, अन्य मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया। मुकदमे की सुनवाई 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुई और 23 मार्च, 1973 तक चली।
यह था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि मूल अधिकार संविधान संशोधन के तहत खत्म नहीं किए जा सकते। हालांकि संपत्ति के मालिकाना हक को सीमित करने के कानूनों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज नहीं किया, लेकिन साफ किया कि संसद चाहे तो संशोधन कर सकती है। यह संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे को तोडऩे या बदलने वाले नहीं हो सकते।
20 हजार फैसलों का अनुवाद
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अब फैसला हिंदी, तेलुगू, तमिल, उड़िया, मलयालम, गुजराती, कन्नड़, बंगाली, असमिया और मराठी में उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के 20,000 फैसलों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है और उन्हें ई-एससीआर (उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण) पर अपलोड किया गया है।