किन्हें कराना होगा पंजीकरण?
लिव-इन रिलेशनशिप के वे मामले पंजीकृत नहीं किए जाएंगे जो “सार्वजनिक नीति और नैतिकता के विरुद्ध” हैं। यदि एक साथी विवाहित है या किसी अन्य रिश्ते में है, यदि एक साथी नाबालिग है और यदि एक साथी की सहमति “जबरदस्ती, धोखाधड़ी” द्वारा प्राप्त की गई थी, या गलत बयानी (पहचान के संबंध में)।”
मीडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप के विवरण स्वीकार करने के लिए एक वेबसाइट तैयार की जा रही है जिसे जिला रजिस्ट्रार से सत्यापित किया जाएगा, जो रिश्ते की वैधता स्थापित करने के लिए “सारांश जांच” करेगा। ऐसा करने के लिए वह किसी एक या दोनों साझेदारों या किसी अन्य को बुला सकता है। यदि रिश्तों के पंजीकरण से इनकार कर दिया जाता है तब रजिस्ट्रार को लिखित तौर पर कारण बताने होंगे।
लिव-इन रिलेशनशिप अंत की भी देनी होगी सूचना
पंजीकृत लिव-इन संबंधों की “समाप्ति” के लिए “निर्धारित प्रारूप” में एक लिखित बयान की आवश्यकता होगी। यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि संबंध समाप्त करने के कारण “गलत” या “संदिग्ध” हैं तो इसकी जांच पुलिस कर सकती है। लिव इन रिलेशनशिप के समाप्ति की सूचना 21 वर्ष से कम आयु वालों के माता-पिता या अभिभावकों को भी दी जाएगी।
पंजीकरण में देरी पर भी होगा जुर्माना
लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण नहीं कराना या गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। जो कोई भी लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत नहीं कराता है उसे अधिकतम छह महीने की जेल, ₹ 25,000 का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा। यहां तक कि पंजीकरण में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल ₹ 10,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
लिव इन में पैदा बच्चों को मिलेगी कानूनी मान्यता
मंगलवार सुबह उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर अनुभाग में अन्य प्रमुख बिंदुओं में यह है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी; यानी, वे “दंपति की वैध संतान होंगे”।