इसके बाद जयराम रमेश ने कहा कि “यह परिस्थितियां हमें ऐसे प्रश्नों की ओर ले जाती हैं, जहां आप यह कह कर नहीं बच सकते की हम अदाणी ने है कौन।” जिसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से तीन सवाल किए।
बिजनेस घराने से नजदीकी का आरोप लगाते हुए जयराम ने PM से किया सवाल
जयराम रमेश ने अपने पहले सवाल में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि “गौतम अदाणी के भाई विनोद अली का नाम पनामा पेपर्स, पेंडोरा पेपर्स और ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूहों में ऑफशोर कंपनियों को संचालित करने वाले व्यक्ति के रूप में सामने आया था। उन पर ‘ऑफशोर शेल कंपनियों के एक विशाल मायाजाल’ के माध्यम से स्टॉक में खुल्लम-खुल्ला हेरफेर करने और खातों में धोखाधड़ी में संलिप्त होने का आरोप लगा है।”
इसके बाद बिजनेस घराने से नजदीकी का जिक्र करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि “आप हमेशा भ्रष्टाचार से लड़ने में अपनी निष्ठा और नीयत की बातें बढ़-चढ़कर करते हैं, और आपकी इसी प्रवृत्ति के कारण लाई गई नोटबंदी के कारण देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आज जबकि यह अकाट्य सत्य हमारे सामने है कि एक ऐसा बिजनेस घराना जिससे आपकी सार्वजनिक नजदीकिया है। वह गंभीर आरोपों के घर में है, तो इस संबंध में आपके द्वारा करवाई जा रही जांच की निष्पक्षता और ईमानदारी पर आप थोड़ा प्रकाश डालिए।”
क्या निष्पक्ष जांच की उम्मीद की जा सकती है?: जयराम
जयराम रमेश ने दूसरे सवाल में एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि “सालों से आपने प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और खुफिया राजस्व निदेशालय जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को डराने-धमकाने और उन व्यापारिक घरानों को दंडित करने के लिए किया है। जो आपके पूंजीपति मित्रों के वित्तीय हितों के अनुरूप नहीं हैं। अदाणी ग्रुप के खिलाफ सालों से लगाए जा रहे गए गंभीर आरोपों की जांच के लिए आपके द्वारा क्या कार्रवाई की गई है? क्या आपकी देखरेख में किसी निष्पक्ष और न्यायोचित जांच की उम्मीद की जा सकती है?”
जयराम रमेश ने तीसरे सवाल में बिजनेस ग्रुपों को परेशान करने का आरोप लगाते हुए कहा कि “यह कैसे संभव है कि भारत के सबसे बड़े बिजनेस घराना में से एक, जिसे एयरपोर्ट और बंदरगाहों में एकाधिकार स्थापित करने की अनुमति दी गई है, लगातार आरोपों के घेरे में होने के बावजूद इतने लंबे समय से गंभीर जांच से बचता चला आ रहा है? अन्य बिजनेस ग्रुपों को हल्के आरोपों के लिए एजेंसियों ने परेशान किया है और उन पर छापे मारे गए। क्या अदानी ग्रुप उस व्यवस्था के लिए आवश्यक था, जिसने इन सभी सालों के दौरान ‘भ्रष्टाचार-विरोधी’ बयानबाजी का भरपूर लाभ उठाया है?”