‘तीर कमान’ और ‘घड़ी’ का असली हकदार कौन है?
दरअसल, भाजपा, कांग्रेस हों या शरद पवार तीनों के लिए यह चुनाव सत्ता में आने के मिशन के बावजूद एक सामान्य चुनाव की तरह ही है। हार हो या जीत, उनकी राजनीति में प्रासंगिकता नहीं खत्म होने वाली। भाजपा और कांग्रेस को किसी मोर्चे पर साबित नहीं करना है। शरद पवार, लोकसभा चुनाव में 8 सीट जीतकर दमखम साबित कर चुके हैं। उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी बारामती से लोकसभा चुनाव जीतकर खुद का लोहा मनवा चुकी हैं। लोकसभा में मौका चूक जाने वाले अजित पवार के सामने विधानसभा चुनाव ही वो अवसर है, जिसमें वे राज्य की राजनीति में खुद को साबित कर सकते हैं। यदि वे इसमें असफल रहे तो न इधर के रहेंगे न उधर के। इसी तरह यदि उद्धव ठाकरे हारते हैं तो शिवसेना के उन खांटी कार्यकर्ताओं में भी एकनाथ शिंदे का वर्चस्व बढ़ेगा, हो विपरीत हालात में भी उनके साथ खड़े रहे थे। अगर शिंदे गुट अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है तो एनडीए में भाव कम होगा। आमने सामने टक्कर में साबित होगा कौन असली – नकली
लोकसभा चुनाव में भले ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटें मिलीं थी लेकिन, उनसे कम सीट पर लड़कर एकनाथ शिंदे का गुट 7 सीटें जीतने में सफल रहा था। असली-नकली का फैसला उन सीटों से होगा जहां दो धड़ों के बीच सीधा मुकाबला है। उद्धव और शिंदे दोनों धड़े 49 सीटों पर आमने-सामने हैं तो शरद पवार और अजित पवार गुट 38 सीटों पर आमने सामने की लड़ाई में है। एनसीपी के धड़ों के बीच मुख्य मुकाबलापश्चिम महाराष्ट्र की सीटों पर है।