असमंजस का सबसे बड़ा कारण दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग का फाइनल आंकड़ा घोषित न होना है। दोनों में अधिकृत रूप से यह स्पष्ट ही नहीं है कि गठबंधन की कौनसी पार्टी आखिर कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। एमवीए में अब तक जो अधिकृत जानकारी दी गई है उसके अनुसार कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद) में 85-85 सीटों पर लड़ने का फैसला हो चुका है, बाकी की 33 सीटों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इसी तरह महायुति में मोटे तौर पर भाजपा 153 (छोटे दलों के लिए छोड़ी सीटों समेत), शिवसेना 80 और एनसीपी की 55 सीट तय हुई थी, लेकिन कम से कम 10 सीटों को लेकर विवाद पर्चा दाखिल करने के अंतिम दिन तक बना रहा।
आखिरी दिन दो सीटों पर बगावत
नामांकन दाखिल करने का काम पूरा होने तक एनसीपी अजित ने मानखुर्द शिवाजीनगर से विवादास्पद नवाब मलिक को पर्चा भरवा कर चौंका दिया, वहीं भाजपा से दो नेताओं के बगावत की खबर आई। बोरीवली सीट से पूर्व सांसद गोपाल शेट्टी ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय पर्चा भर दिया वहीं मुंबादेवी सीट से भाजपा नेता शायना एनसी को शिवसेना शिंदे का टिकट दिए जाने से नाराज अतुल शाह ने भाजपा से बगावत कर दी।
खींचतान का असर नतीजों तक रहेगा
जानकारों के अनुसार इस गठबंधनों में सीट बंटवारे में खींचतान का नतीजों पर बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि पूरे महाराष्ट्र में इस बार फाइट इतनी टाइट है कि किसी की छोटी सी भी चूक उसे कुर्सी से दूर कर सकती है। यही वजह है कि महायुति की सीट शेयरिंग की कमान भाजपा के दिग्गज अमित शाह ने खुद संभाल रखी है। वहीं कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच चल रही रस्साकशी को महाराष्ट्र की राजनीति के पितामह कहे जाने वाले शरद पवार पर्दे के पीछे रह कर खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों में से जो अपने प्रयासों में ज्यादा सफल होगा उस गठबंधन के अवसर उतने ज्यादा बढ़ने वाले हैं।