अस्पष्ट और उलझी हुई महाराष्ट्र विधानसभा की सभी 288 सीटों पर मतदाता ने अपना फैसला बुधवार को वोटिंग मशीन (ईवीएम) के हवाले कर दिया। महाराष्ट्र के मतदाता का यह सबसे मुश्किल और देश की राजनीति को मोड़ देने वाला अहम फैसला चुनाव आयोग शनिवार 23 नवंबर को सुनाएगा। यह चुनाव जीतने के लिए महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) कितनी बेसब्र है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले से उलझन में फंसे महाराष्ट्र के मतदाता के सामने वोट डालने जाने से ऐन पहले वोट फोर कैश और मतदान के दिन बिटकॉइन घोटाले जैसे मामले परोस दिए गए। क्या मतदाता ने इन मामलों को गंभीरता से लिया या फिर राजनीतिक स्टंट मान कर खारिज कर दिया, इसका खुलासा भी हो जाएगा।
लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद ताबड़तोड़ शुरू की गई शिंदे सरकार की लाड़की बहन जैसी लोकलुभावन योजनाएं मध्यप्रदेश जैसा उलटफेर कर पाई या नहीं, इसका पता चलेगा। फैसला यह भी होगा कि फाइनली असली शिवसेना उद्धव ठाकरे की है या एकनाथ शिंदे की, असली एनसीपी दिग्गज शरद पवार की है या उनके भतीजे अजित पवार की। राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से देखा जाए यह फैसला बताएगा कि मतदाता भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे उग्र हिदुत्व के मुद्दों के साथ गया या फिर महंगाई और बेरोजगारी उसकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण रहा। किसानों ने अपनी फसल का दाम नहीं मिलने और कर्ज जैसी समस्याओं पर गुस्सा निकाला या वह हिंदुत्व के नारे और जातियों के जाल में फंसकर असल मुद्दों से हट गया। मराठी अस्मिता का नारा और महाराष्ट्र के उद्योग गुजरात ले जाने का आरोप मतदाताओं ने सही माना या गलत। सबसे अहम सवाल जिसका जवाब मिलेगा वह ये है कि क्या उद्धव का ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री का पद न देकर भाजपा के रणनीतिकारों के गलती तो नहीं की, यह भी इस बार के नतीजे स्पष्ट कर देंगे।
मतदान प्रतिशत बढ़ने का किसे होगा फायदाः
नतीजों पर सीधा प्रभाव डालने वाले मतदान प्रतिशत की बात की जाए तो 2014 के 63.38 प्रतिशत के बाद 2019 में 61.4 और अब 64.50 प्रतिशत ही वोट पड़े हैं। शहरों की तुलना में गांवों में मतदान ज्यादा हुआ है। मुंबई शहर का आंकड़ा 51.27 फीसदी रहा है। 2019 में 2014 के मुकाबले मतदान दो प्रतिशत घटने का सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन को नुकसान हुआ और वह सत्ता से बाहर हो गई थी। इस बार करीब तीन प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ है। क्या इस बार भी सत्तारूढ़ महायुति को फायदा होगा, क्योंकि 2009 में 60 फीसदी मतदान हुआ था जो 2014 में 3 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा था, मगर उस समय के सत्तारूढ़ को भी भारी नुकसान हुआ था। यानी मतदान प्रतिशत घटे या बढ़े इसका एक जैसा असर हर चुनाव में एक जैसा नहीं होता। महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के टूटने से राजनीतिक दलों संख्या 4 से 6 हो गई और बार शिवसेना और एनसीपी आपस में भी लड़ रही। बागियों और निर्दलीयों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ी है।
झारखंड में पहली बार हिंसामुक्त चुनाव
रांची. झारखंड में 81 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए मतदान संपन्न हो गया। बुधवार को दूसरे और आखिरी चरण में 38 सीटों पर 68.39 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। फाइनल आंकड़े में कुछ प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके पहले 13 नवंबर को 43 सीटों पर पहले चरण में हुए चुनाव में 66.65 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। संथाल परगना की महेशपुर विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 79.82 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले हैं। सबसे कम मतदान बोकारो शहरी सीट पर 50.06 प्रतिशत और धनबाद में 52.31 प्रतिशत दर्ज किया गया है। सबसे खास बात यह रही कि झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव रहा, जिसमें हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। दशकों तक नक्सल प्रभावित रहे इलाकों में बंपर वोटिंग का रेकॉर्ड बना। महिलाओं ने सर्वाधिक मतदान का रेकॉर्ड बनाया। पहले चरण की 43 में 37 सीटों पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा संख्या में मतदान किया था। बुधवार को दूसरे चरण के मतदान में भी यही ट्रेंड रहा। अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीटों पर सामान्य सीटों की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है। राज्य में दोनों चरणों को मिलाकर कुल 2 करोड़ 26 लाख से ज्यादा वोटर थे। इसके साथ ही चुनाव में उतरे कुल 1,211 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है।