‘यह कोई नई समस्या नहीं है’
उन्होंने कहा कि जब में विपक्ष में विधायक था, तब भी इस मुद्दे को विधानसभा में गंभीरता से उठाया था। चाहे वह फॉरेस्ट कॉरपोरेशन हो, हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन हो हिमाचल पर्यटन विकास बोर्ड हो या अन्य कोई सरकारी बोर्ड और कॉरपोरेशन, लगभग सभी वित्तीय घाटे में चल रहे हैं। यह कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि यह लंबे समय से चली आ रही है। सरकारी संस्थानों और बोर्ड्स को वित्तीय मजबूती देना और उन्हें घाटे से उबारना सरकार का दायित्व है।बता दें कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की वित्तीय तंगी का हवाला देते हुए घाटे में चल रहे 18 सरकारी होटलों को बंद करने का आदेश दिया था।
‘इन मुद्दों को लेकर कैबिनेट की बैठकें भी होती हैं’
मंत्री ने कहा कि इन समस्याओं में कई तरह की जटिलताएं हैं, जैसे कर्मचारियों के पेंशन, लाभ और अन्य वित्तीय दायित्व। इन मुद्दों को लेकर कैबिनेट की बैठकें भी होती हैं, जिसमें सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि कैसे इन घाटे में चल रहे संस्थानों को बेहतर किया जाए, उन्हें मुनाफे में लाया जाए और उनके प्रबंधन को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाए। विक्रमादित्य सिंह ने कहा होटलों को बंद करने का निर्णय लिया गया था। उसमें कहा गया कि हाई कोर्ट ने होटल्स की 40 प्रतिशत ऑक्यूपेंसी को लेकर यह निर्णय लिया था। इस फैसले में यह बात सामने आई कि कुछ होटल, जैसे चहल पैलेस (जो महाराजा पटियाला की प्रॉपर्टी थी और हिमाचल प्रदेश की एक प्रतिष्ठित प्रॉपर्टी है), में कॉर्पोरेट इवेंट्स, शादियों और अन्य प्रकार के प्रोग्राम होते हैं, जो सिर्फ ऑक्यूपेंसी के आधार पर नहीं देखे गए। ऐसे इवेंट्स इन होटलों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।