महाराष्ट्र में मराठी जनता का झुकाव ठाकरे परिवार की तरफ ज्यादा दिख रहा है। हालांकि चुनाव से पहले दोनों गुटों के लोगों का आपस में पाला बदलना जारी है। जब तक सहयोगी दलों में सीटों का बंटवारा और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं हो जाती है यह आयाराम गयाराम का दौर चलता रहेगा। पिछले दो महीनों से शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे प्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार दौरा कर रहे हैं, ताकत बढ़ाने के लिए सत्ता पक्ष का घेराव कर रहे हैं और पार्टी चुनाव चिह्न ‘ज्वलंत मशाल’ को जमकर प्रमोट कर रहे हैं। उधर, एकनाथ शिंदे भी विधायकों-मंत्रियों के साथ सभाओं में उद्धव ठाकरे गुट पर हमलावर हैं। वह ठाकरे परिवार से मिली वेदना भी बताना नहीं भूल रहे हैं।
भाजपा की रणनीति में राज!
भाजपा को जो लाभ शिवसेना के टूटने से मिलने की अपेक्षा थी शायद वह नहीं मिल रहा है। भाजपा अब नई रणनीति के तहत राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) को साथ लेने में जुटी है, वजह है मनसे का 2.4 प्रतिशत वोट बैंक। भाजपा की मनसे से युति का मतलब साफ है कि वह शिवसेना उद्धव गुट की ताकत को भांप रही है।
बालासाहेब का नाम
प्रदेश में लंबे समय तक किंगमेकर रहे शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की पार्टी के अब दो गुट होने के बाद उनके बेटे उद्धव को चुनाव चिह्न ‘ज्वलंत मशाल’ मिला। इससे वे राज्य में नई रोशनी लाने और अपनी पार्टी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने की कोशिश में हैं। शिंदे भी खुद को बालासाहेब का अनुयायी बताते हैं व ठाणे के धर्मवीर आनंद दिघे की फोटो लगाकर वोट मांग रहे हैं।
ऐसे टूटी शिवसेना
एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से अलग होकर न सिर्फ भाजपा के समर्थन से खुद सीएम बने बल्कि बाद में शिवसेना के नाम और चिह्न पर भी कब्जा किया। उद्धव इस चुनाव में अपने चुनाव चिह्न ‘ज्वलंत मशाल’ से प्रतिद्वंद्वियों के इरादों को जलाने की बात कह रहे हैं।