1560 में कैम्पेगौड़ा को किया गया था कैद विजयनगर साम्राज्य के एक वफादार मांडलिक यलहंका के राजा नाडप्रभु केम्पेगौड़ा ने अपने दामाद राम राय के शासनकाल के दौरान अपने राज्य में उपजी आर्थिक स्थिति में सुधार करने और जनता के कल्याण के लिए सम्राट की अनुमति के बिना बैरेश्वर नाम से सिक्के चलाए थे। इससे क्रोधित होकर दामाद रामराय ने केम्पेगौड़ा को राजधानी विजयनगर में दशहरा उत्सव में आमंत्रित कर गिरफ्तार कर जेल में डाला था। केम्पेगौड़ा को वर्तमान वर्ष 1560 से 5 वर्षों के लिए आनेगोंदी जेल में कैद में रखा गया था। चालू वर्ष 1565 में उनसे भारी जुर्माना वसूलकर रिहा किया गया था। इस तथ्य का उल्लेख मैसूर गजेटियर (1997) में किया गया है।
केम्पेगौड़ा को रखी गई जेल की तलाशी में जुटे डॉ. कोलकार ने परिस्थितिजन्य परिस्थितियों का अवलोकन कर अनुमान लगाया कि आनेगोंदी के ओंटी सालु आने सालु नामक इमारत ही आनेगोंदी की जेल होनी चाहिए परन्तु आनेगोंदी में प्रचलित मौखिक वृत्तांतों से संकेत मिलता है कि केम्पेगौड़ा को जिंजर बेट्टा पहाड़ी में कैद करके रखा गया था। उस मौखिक जानकारी का अवलोकन करपहाड़ी की मौलिक रूप से खोज करने पर पहाड़ी पर एक विस्तृत क्षेत्र में रक्षा दीवारों, पहरेदारी (गार्ड) टावरों, पहरेदारों के घरों, सैनिकों के क्वार्टर, एक सुरक्षा भवन (जेल), अन्न भंडार और प्राकृतिक जल तालाबों पाए गए। लगभग 400 मीटर ऊंचा है और शीर्ष स्थान अत्यंत गुप्त है।
शोध पत्र पेश किया शरणबसप्पा कोलकार ने बताया कि नीचे से ऊपर देखने पर इने सभी इमारतों के होने का पता ही नहीं चल पाता है, इसलिए इन सभी इमारतों के खंडहर यह दर्शाते हैं कि यह एक जेल है। इसके चलते मौखिक विरासत और इमारतों की स्थिति को देखकर यह तय हुआ है कि आनेगोंदी जिंजरबेट्टा के ये इमारतें ही विजयनगर काल की जेल है जहां केम्पेगौड़ा को कैद किया गया था। उन्होंने बताया कि उन्होंने राज्य के प्राच्य वस्तु, संग्रहालय और विरासत विभाग की ओर से आयोजित हम्पी उत्सव के दौरान विजयनगर अध्ययन सेमिनार में भी इस जेल के बारे में एक पेपर प्रस्तुत किया था।