इस समय जेल में बंद है बरकती उर्फ आजादी चाचा
बरकती इस समय जेल में बंद है। उसे पहली बार 2016 में गिरफ्तार किया गया था और रिहा होने के बाद पिछले साल उसे फिर से गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया। उसे आतंकवादी-अलगाववादी का विचारक, प्रवर्तक और समर्थक माना जाता है। उसकी पत्नी को भी धन शोधन के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले शोपियां जिले के जैनपोरा निर्वाचन क्षेत्र में बरकती का नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया था, क्योंकि जेल अधीक्षक द्वारा सत्यापित अनिवार्य शपथ पत्र नामांकन पत्र के साथ संलग्न नहीं था।राजनीतिक परिवार के रूप में गांदरबल में अच्छी पकड़
अब गांदरबल और बीरवाह में उसके कागजात की जांच की जाएगी। रिश्तेदारों और समर्थकों का दावा है कि इस बार मौलवी के कागजात हर तरह से पूरे हैं। वैसे कहा ये भी जा रहा है कि उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनावी मैदान में बरकती की दावेदारी का एनसी नेता के लिए कम चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अब्दुल्ला परिवार एक राजनीतिक परिवार के रूप में गांदरबल में अच्छी तरह से स्थापित है।निर्दलीय होकर ठोक रहे है ताल
हालांकि बरकती ने उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनौती को थोड़ा बढ़ा दिया है, लेकिन गांदरबल में एनसी की असली चिंता अन्य दो संभावित मजबूत उम्मीदवारों से है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बशीर अहमद मीर और जेएंडके यूनाइटेड मूवमेंट (जेकेयूएम) से राह जुदा कर निर्दलीय ताल ठोक रहे इश्फाक जब्बार शामिल हैं। यह भी पढ़ें
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धार्मिक-राजनीतिक ताकत के सामने काफी पीछे बशीर मीर
मीर पड़ोसी कंगन विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। वह पहले भी एनसी के वरिष्ठ गुज्जर नेता मियां अल्ताफ अहमद को चुनौती देते रहे हैं। 2014 के चुनावों में मियां ने मीर को 2,000 से भी कम मतों से हराया था और यह उन लोगों के लिए एक बड़ा झटका था जो यह मान रहे थे कि कंगन निर्वाचन क्षेत्र में मियां परिवार की धार्मिक-राजनीतिक ताकत के सामने मीर काफी पीछे दूसरे स्थान पर रहेंगे। परिसीमन के बाद कंगन अब एक अनुसूचित जनजाति सीट है और यही मुख्य कारण है कि बशीर मीर पड़ोसी गांदरबल विधानसभा सीट पर चले गए।युवा वोटर्स बशीर मीर के पक्ष में
मीर का गांदरबल में जाना भगोड़े का भागना नहीं है। गांदरबल में पीडीपी की एक राजनीतिक पार्टी के रूप में अच्छी पकड़ है और यही वह निर्वाचन क्षेत्र है जहां 2002 के चुनावों में उमर अब्दुल्ला पीडीपी के काजी अफजल से हार गए थे। उमर ने बाद में 2008 में यहां से जीत हासिल कर अपनी हार का बदला लिया, लेकिन 2024 में मुकाबला कुछ हटकर मुकाबला होगा। युवा वोटर्स बशीर मीर के पक्ष में एकजुट हो गए हैं और इससे उमर अब्दुल्ला के खिलाफ संभावनाएं बढ़ गई हैं। यह भी पढ़ें
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इश्फाक जब्बार ने बढ़ाई एनसी की चिंताएं
इश्फाक जब्बार की मौजूदगी से भी एनसी की चिंताएं बढ़ गई हैं। 2014 में उन्होंने इस निर्वाचन क्षेत्र से एनसी उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में उन्हें ‘एनसी विरोधी गतिविधियों’ के चलते पार्टी से निकाल दिया गया था। इश्फाक गांदरबल के लार गांव से ताल्लुक रखते हैं और दिवंगत शेख जब्बार के बेटे हैं, जो एक वरिष्ठ एनसी नेता थे, जिन्होंने 1984 में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली एनसी सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी- तब 17 एनसी विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी और फारूक के बहनोई जीएम शाह ने दलबदलुओं का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। इश्फाक ने पिछले 10 वर्षों से गांदरबल के लोगों के बीच अपनी उपस्थिति बनाए रखी है। इसी दौरान उन्होंने जेकेयूएम का गठन किया। उमर अब्दुल्ला के खिलाफ उनकी मौजूदगी ऐसी नहीं है जिसे एनसी हल्के में ले सकती है। गांदरबल में अब्दुल्ला के लिए थोड़ी परेशानी साहिल फारूक से भी है। साहिल ने कांग्रेस के जिला अध्यक्ष पद को चुनौती देते हुए स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया था।