हो गया कन्फर्म, इस पार्टी से होगा लोकसभा का नया अध्यक्ष, डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर छिड़ेगी जंग
Loksabha: बीजेपी के बड़े नेता ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि सदन में सबसे बड़ा दल होने के कारण इस बार भी बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष का पद अपने पास रखेगी।
सोमवार 24 जून से 18वीं लोकसभा का सत्र शुरु हो जाएगा। इस दौरान सबसे पहले नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाया जाएगा। इसके लिए प्रोटेम स्पीकर की भी नियुक्ति कर दी गई है। पिछले दो बार से लोकसभा स्पीकर का पद अपने पास रखने वाली बीजेपी को इस बार चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं मिल पाया है। ऐसे में कयास लगाया जा रहा था कि इस बार अध्यक्ष की कुर्सी बीजेपी अपने किसी सहयोगी को देगी। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। 18वीं लोकसभा में भी स्पीकर का पद बीजेपी अपने पास ही रखेगी। वहीं, असली लड़ाई डिप्टी स्पीकर के पोस्ट को लेकर है। जानकारी के मुताबिक डिप्टी स्पीकर का पद बीजेपी अपनी सहयोगी तेलगू देशम पार्टी को दे सकती है। जदयू के पास पहले से ही राज्यसभा में उपसभापति का पद है।
डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर छिड़ेगी जंग बीजेपी के बड़े नेता ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि सदन में सबसे बड़ा दल होने के कारण इस बार भी बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष का पद अपने पास रखेगी। जबकि उपाध्यक्ष पर सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी को देगी। हालांकि विपक्ष परंपरानुसार उपाध्यक्ष पद के लिए दावा कर रहा है और ऐसा न होने पर अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों पदों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर निर्विरोध निर्वाचन में अड़ंगा डाल सकती है।
प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर हो चुका है टकराव बता दें कि लोकसभा के नवनियुक्त प्रोटेम स्पीकर के पद को लेकर पहले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष में ठन गई है। कांग्रेस की तरफ से वरिष्ठ सांसद के सुरेश का नाम आगे बढ़ाया गया था। आठ बार के सांसद सुरेश का वरिष्ठता के लिहाज से दावा भी बनता था, लेकिन सरकार ने सात बार के सांसद भाजपा के भर्तृहरि महताब को इसके लिए चुना क्योंकि वह सात बार लगातार जीते हैं, जबकि सुरेश बीच में दो बार हारे थे।
सरकार ने दिया संकेत सरकार रहे या जाए तेवर नहीं होगा कम प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ती के दौरान ही सरकार ने इस बात का संकेत दे दिया था कि सरकार रहे या जाए तेवर कम नहीं होगा। भाजपा ने 18वीं लोकसभा की शुरुआत में ही साफ कर दिया है कि वह विपक्ष के सामने किसी तरह का समझौतावादी रुख नहीं अपनाएगा। भले ही उसकी ताकत कुछ कम हुई हो, लेकिन पिछली दो सरकारों की तरह वह इस बार भी उन्हीं तेवरों और सक्रियता के साथ काम करेगी।
विपक्ष के तेवर भी कम नहीं इस बार विपक्ष के तेवर भी कम नहीं है। लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों की संख्या पिछली बार से लगभग दोगुनी हुई है। सरकार द्वारा उसे उपाध्यक्ष न दिए जाने की स्थिति में विपक्ष अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर उम्मीदवार उतार सकता है। ऐसे में नई लोकसभा की शुरुआत से ही सरकार और विपक्ष सर्वानुमति की जगह टकराव और बहुमत की ताकत की तरफ बढ़ेंगे। इससे सदन में कई मुद्दों पर टकराव बढ़ने की आशंका है। खासकर संविधान संशोधन जैसे विधेयकों पर जहां दो तिहाई सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। ऐसे में कई मुद्दों पर सरकार को विपक्ष के सहयोग के बिना अपना कामकाज निपटाना मुश्किल हो सकता है और कई बार पीछे भी हटाना पड़ सकता है।