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मोतीलाल नेहरू को बीजी हॉर्निमन और सैयद हुसैन द्वारा पेपर की स्थापना में सहायता प्रदान की गई जो स्वतंत्र संपादक बने। शुरूआत में अखबार काफी आर्थिक परेशानियों से जूझा। इसके साथ ब्रिटिश पॉलिसी के खिलाफ लिखने के कारण अखबार पर ब्रिटिश सरकार का बेहद दबाव था।
सैयद हुसैन ने कुछ महीने बाद अपने संपादक पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़ दिया। इसके बाद जॉर्ज जोसेफ को उनके उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। जोसेफ के साथ संपादकीय स्टाफ में एस सदानंद जो बाद में समाचार पत्रों के फ्री प्रेस समूह के प्रबंधक बने और महादेव देसाई जो गांधी के सहयोगी और निजी सचिव।
हिंसा भड़काने का आरोप लगाया
1921 में संयुक्त प्रांत के मुख्य सचिव ने जॉर्ज और इंडिपेंडेंट के प्रकाशक सी बी रंगा अय्यर को पत्र लिखकर उन पर अपने प्रकाशन के माध्यम से हिंसा भड़काने का आरोप लगाया और भविष्य में ऐसी किसी भी सामग्री को प्रकाशित करने से परहेज करने के लिए कहा। हालांकि संपादक और अखबार ने सरकार की चेतावनी को नजरअंदाज किया।
तीन वर्ष के लिए जेल भेज दिया
6 दिसंबर, 1921 को जॉर्ज जोसेफ को गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दिन एक मुकदमे में तीन वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। 22 दिसंबर, 1921 को, महादेव देसाई ने ‘मैं बदल गया, लेकिन मैं मर नहीं सकता’ शीर्षक के तहत फिर से पेपर प्रकाशित करना शुरू किया। ये एक हस्तलिखित कागज की साइक्लोस्टाइल प्रतियां थीं और इसकी प्रत्येक प्रति की नीलामी की गई थी, जिसकी कुल राशि ₹350 थी। जल्द ही, देसाई को भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक अपंजीकृत समाचार पत्र निकालने के लिए एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उनकी गिरफ्तारी के बाद, देवदास गांधी ने अखबार को संभाल लिया।