आजादी के लिए देश के लाखों वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूती दी है। इन्ही में से एक महानायक थे सुभाष चंद्र बोस। स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को नेताजी के नाम से भी जाना जाता है। वे 1938 से 1939 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के अध्यक्ष थे।
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उन्होंने नाजी जर्मनी और इंपीरियल जापान की मदद से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन से आजादी की लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में उन्हें भले ही आंशिक सफलता मिली हो लेकिन देश के युवाओं के अंदर आजादी के लिए एक ऊर्जा का संचार हो गया था। सुभाष चंद्र बोस ने 1942 में जापान की मदद से आजाद हिंद सेना या भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना की थी। इस सेना ने ही सबसे पहले तिरंगा लहराकर आजादी की घोषणा दी थी।
इस महान शख्सियत को अपना राजनीतीक गुरु मानते थे सुभाष चंद्र बोस
आपको बता दें कि अंग्रेजों को नाकों चने चबवा देने वाले सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था और ऐसा माना जाता है कि 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया था। हालांकि, अभी भी कई इतिहासकारों और लोगों का मानना है उस वक्त नेता जी का निधन नहीं हुआ था। पर पश्चिम बंगाल सरकार ने कई सबूत पेश किए कि विमान दुर्घटना के बाद वे जीवित नहीं थे।
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सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ लडा़ई के लिए स्वराज नाम से एक अखबार शुरू किया और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्रचार का कार्यभार संभाला। सुभाष चंद्र बोस महान विचारक और स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। चित्ररंजन दास बंगाल में आक्रामक राष्ट्रवाद के प्रवक्ता थे।
1923 में जब नेता जी अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव चुने गए तब वे चित्तरंजन दास द्वारा स्थापित समाचार पत्र “फॉरवर्ड” के संपादक भी थे। नेता जी अपने राजनीतिक गुरु के नक्शेकदम पर चलते हुए आक्रमक राष्ट्रवाद का परिचय देते हुए पूरे देश में आजादी की लड़ाई में भाग लेने युवाओं को प्रेरित किया। बोस ने आजादी के संदर्भ में ही नारा दिया था.. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। इस नारे ने देश में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा किया।