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Ground Report: सांसद ने दिखाई रुचि तो हुआ काम वरना कागजों में ही सिमटा प्लान

Ground Report: केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद गांवों के सुनियोजित विकास के लिए शुरू हुई सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) अलग से बजट के अभाव में सांसदों की रुचि पर निर्भर हो गई है।

नई दिल्लीOct 15, 2024 / 07:34 am

Shaitan Prajapat

Ground Report: केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद गांवों के सुनियोजित विकास के लिए शुरू हुई सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) अलग से बजट के अभाव में सांसदों की रुचि पर निर्भर हो गई है। जहां सांसद ने रुचि ली वहां गांवों की तस्वीर बदली है लेकिन जहां माननीय ने मुंह फेरा वहां ग्राम विकास का प्लान कागजों तक ही सिमटता दिख रहा है। हालांकि केंद्र सरकार इस योजना से आदर्श गांवों का चेहरा बदलने का दावा करती है लेकिन ‘पत्रिका’ ने चार राज्यों के एक-एक संसदीय क्षेत्र में इस योजना पर अमल का ग्राउंड पर रियलिटी चैक किया तो मिली-जुली तस्वीर सामने आई। गांवों में सड़क, सामुदायिक केंद्र, स्कूल भवन जैसे काम हुए हैं वहीं बड़े बजट के काम होने में दिक्कत आई है। निजी बातचीत में सांसद कहते हैं कि अलग से बजट मिलने पर यह योजना ज्यादा प्रभावी हो सकती है। नई लोकसभा गठित हुए चार माह से अधिक होने के बावजूद इस बार एसएजीवाइ के तहत सांसदों के गांव गोद लेने पर फिलहाल कोई चर्चा नहीं है।

पहले उत्साह, फिर औपचारिकता

वर्ष 2014 में शुरू हुई इस योजना के तहत 2016 तक एक, 2019 तक दो तथा 2024 तक हर संसदीय क्षेत्र में पांच गांवों का विकास किया जाना था। शुरुआती दौर में सांसदों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। दूसरे कार्यकाल में अधिकतर सांसदों ने औपचारिकता के लिए संबंधित जिला प्रशासन को गोद लेने वाले गांवों की सूची देकर इतिश्री कर ली। यही वजह है कि 2024 आते-आते विलेज डवलपमेंट प्लान (वीडीपी) साइट पर अपलोड कराने की संख्या भी घटती चली गई। पहले चरण में मध्यप्रदेश ने 37, राजस्थान ने 34 और छत्तीसगढ़ ने 16 ग्राम पंचायतों की वीडीपी बनाकर अपलोड की गई। वहीं आठवें चरण में राजस्थान में 17, मध्यप्रदेश में 9 और छत्तीसगढ़ में सिर्फ 6 ग्राम पंचायतों की वीडीपी बनाई गई।
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संसद में उठ चुका मुद्दा

एसएजीवाई में अलग से बजट प्रावधान की मांग संसद में उठती रही है। पिछले बजट सत्र में भी राजस्थान में चूरू के सांसद राहुल कस्वां ने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि गांव के विकास के लिए 20-22 करोड़ रुपए का वीडीपी बना लेकिन उसके लिए फंडिंग आज तक नहीं हुई। उन्होंने इस योजना में अलग से बजट प्रावधान की मांग की थी।
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एसजीवाई में टॉप दस राज्य

राज्य – चिन्हित ग्राम पंचायतें
यूपी 552
तमिलनाडु 370
महाराष्ट्र 260
गुजरात 238
आंध्र प्रदेश 207
बिहार 198
राजस्थान 190
केरल 167
मध्यप्रदेश 140
कर्नाटक 133

राजस्थान: सरकारी योजनाओं के कैंप लगा कर काम

संसदीय क्षेत्र: अलवर, तत्कालीन सांसद: महंत बालकनाथ (अब विधायक)
गांव गोद लिए – रोडवाल, दोसोद व चिडोही, राशि खर्च -40 लाख रुपए
क्या असर – गांवों में सीसी रोड व नालियां बनीं, पहले सरकारी योजनाओं के लिए कैंप लगे लेकिन बाद में हालात पुराने ढर्रे पर। सांसद निधि से अलग से पानी की टंकी और स्कूल में कमरे बने। पानी, बिजली, गंदगी व अन्य समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। बालकनाथ के सांसद पद से हटने के बाद गांव पर अफसरों का ध्यान नहीं है।
वर्जन- सांसद आदर्श योजना में कुछ काम हुए थे, लेकिन बड़ा काम नजर नहीं आया। पानी, बिजली, नालियों की बड़ी समस्या है।
-डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं सरोज सैन, नागरिक, रोडवाल गांव
योजना के लिए अलग से बजट नहीं है। विभागों से काम कराया, सांसद कोष जो पैसा मिला उसमें भी साढ़े तीन करोड़ रुपए कोविड के समय सीएचसी व पीएचसी को दे दिया था। – बाबा बालकनाथ, पूर्व सांसद अलवर व विधायक तिजारा

मध्यप्रदेश: 9 साल बाद भी हालात वही

संसदीय क्षेत्र: टीकमगढ़, सांसद: डॉ.वीरेंद्र कुमार खटीक (केंद्रीय मंत्री)
गांव गोद लिया: गोर (तहसील-मोहनगढ़), राशि खर्च: अलग से बजट नहीं, 18 लाख रुपए खर्च
क्या असर: गांव को आदर्श बनाने के लिए बैठकें और प्रस्ताव पास होते रहे लेकिन धरातल पर योजनाएं नहीं आ सकीं। खेल मैदान से लेकर सड़क तक की हालत बदतर हैं। हैंडपंप बंद पड़े हैं। लोगों के घरों तक न नल से जल पहुंचा और न ही पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं। महिलाओं को रोजगार देने के लिए बनाया कंबल केंद्र बंद हो गया है। सांसद कोष के10 लाख रुपए से बनी उत्सव वाटिका का भवन रखरखाव के अभाव मेंं खंडहर और अनुपयोगी हो गया।
वर्जन -गांव के हालात वही हैं। इलाज के लिए मोहनगढ़ और टीकमगढ़ जाना पड़ रहा है। सर्दी में भी पानी की किल्लत है, पेयजल के लिए जल जीवन मिशन की पाइप लाइन बिछी जरूर है। यहां देशी शराब का ठेका बंद कराना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी का भी ठेका और खुल गया।
-नीलम देवी खंगार, नागरिक, गोर गांव
वर्जन- यह गांव दो साल के लिए गोद लिए गए थे। इसका उद्देश्य शासन की सभी ग्राम विकास की योजनाओं के माध्यम से गांव का विकास करना था। उस दौरान गांव में सामुदायिक भवन, सिलाई सेंटर सहित कुछ अन्य कामों को बजट दिया गया था।
-वीरेंद्र कुमार, सांसद एवं केंद्रीय मंत्री, टीकमगढ़

छत्तीसगढ़: खूब काम हुए, अफसर नहीं रोकते गांव की फाइल


संसदीय क्षेत्र: सरगुजा, तत्कालीन सांसद:रेणुका सिंह
गांव गोद लिया: झूमरपारा(तहसील-सूरजपुर), राशि खर्च: 98 लाख रुपए
क्या असर: गांव के भीतरी जगहों पर भी सीसी रोड और नालियां बनीं। गांव में दो पुल बनने से लोगों की आवाजाही आसान हो गई। आदर्श गांव पर अफसरों का विशेष ध्यान है जिससे विकास कार्यों और व्यक्तिगत लाभ की सरकारी योजनाओं का सुगमता से लाभ मिलता है। स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं भी सुधरी हैं। गांव में मंगल भवन बनाने की पहल को लेकर भी लोगों में उत्साह नजर आया।
वर्जन- सांसद का गोद ग्राम होने सेे अफसर चौकन्ने हैं, हमारे गांव के काम की फाइल नहीं रुकती इसलिए यहां अब पुल-पुलिया, सड़क सब कुछ हैं हमारे गांव में। सांसद मैडम ने परिवार की तरह ख्याल रखा। बिजली की समस्या में और सुधार हो जाता तो गांव के बच्चों को पढ़ाई में तकलीफ नहीं होती।
रामानंद जायसवाल एवं कविता रजक, नागरिक, झूमरपारा
-मैंने झूमरपारा सहित तीन गांव गोद लिए थे। उस समय इनमें मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था। हमने इन सुविधाओं के लिए काम किया। मंगल भवन, सड़क, बिजली सभी काम करवाए गए।
-रेणुका सिंह, पूर्व सांसद

गुजरात: सबसे बड़ी समस्या का किया समाधान

संसदीय क्षेत्र:भरूच, सांसद:मनसुख वसावाने
गांव गोद लिया: अविधा (तहसील-झघडिय़ा), राशि खर्च: एक करोड़ रुपए
क्या असर: गांव में स्कूल, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं थीं, लेकिन बारिश के पानी के निकास और गांव की सड़क से लोग परेशान थे। पानी की निकासी के लिए बड़े बजट की जरूरत थी। अविधा गांव को गोद लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले बरसाती पानी निकासी का काम किया। दो बार 50-50 लाख रुपए की राशि स्वीकृत हुई। पक्के बरसाती नाले के साथ सड़क पक्की कर गांव के लोगों की समस्या का समाधान किया।
वर्जन- गांव की पानी निकासी की सबसे बड़ी समस्या का समाधान किया गया। सड़कें बनाने के अलावा सांसद की सहायता से पानी की टंकी और प्राथमिक आरोग्य केंद्र भी बनाया गया जिससे लोगों को बहुत फायदा हो रहा है।
-रस्मी वसावा एवं दु्रपल पटेल, नागरिक, अविधा

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