किसे नफा किसे नुकसान
कांग्रेस ने भले ही गैर गांधी के एल शर्मा को टिकट दिया है, लेकिन इसे प्रचारित ऐसे ही किया जा रहा है कि गांधी परिवार के ही सदस्य को टिकट दिया गया है। राजनीतिक पंडित कांग्रेस के इस कदम को एक सोची समझी रणनीति बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि अमेठी को लेकर बीजेपी की वो रणनीति धरी की धरी रह गई, जिसमें राहुल और स्मृति के फेस ऑफ की उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस के इस मूव से बीजेपी के नेताओं के हाथ से एक बड़ा मुद्दा निकल गया। साथ ही गैर गांधी उम्मीदवार उतारने से बीजेपी अब कांग्रेस पर ‘परिवारवाद’, ‘शहजादा’ और ‘खानदान’ जैसे शब्दों का प्रयोग भी वार-पलटवार में नहीं कर सकेगी। क्योंकि इस चुनाव में राहुल अकेले ही गांधी परिवार से चुनावी मैदान में है। भले ही अमेठी हॉट केक बनी हुई है, लेकिन इस सीट को उतनी तवज्जो भी नहीं मिलेगी जितनी राहुल के चुनाव लड़ने से मिलती। राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने पर कांग्रेस इस सीट पर ही फंस कर रह जाती। लेकिन अब राहुल अन्य क्षेत्रों में भी आसानी से चुनाव की कमान संभाल सकते हैं और अन्य सीटों पर ज्यादा वक्त दे सकेंगे।
स्मृति जीती तो..?
इस सीट पर अगर एक बार फिर स्मृति ईरानी की जीत होती है तो वो जीत इतनी बड़ी नहीं मानी जाएगी, जितनी बड़ी 2019 में राहुल गांधी को हरा कर मिली थी। वहीं अगर के एल शर्मा जीतने में कामयाब होते हैं कांग्रेस यह संदेश देने में कामयाब हो होगी कि केंद्रीय मंत्री को गांधी परिवार के कारिंदे ने ही चुनाव हरा दिया। कुलमिलाकर, कांग्रेस इसे सोची समझी रणनीति बता रही है तो वहीं बीजेपी कह रही डरो मत, भागो मत कह कर घेरने की कोशिश कर रही है।