दीपावली पर्व को हर उम्र और वर्ग के लोग धूमधाम, उल्लास और पूरे उत्साह से मनाते हैं। खास बात यह है कि हिंदू धर्म में विभिन्न संस्कृतियों और मान्यताओं को मानने वाले हैं, मगर त्योहारों को सभी एक परंपरा से मनाते हैं। हां, सभी के तरीकों में कुछ भिन्नता हो सकती है।
प्रकाश पर्व दीपावली को देश के विभिन्न हिस्सों में मनाने की वजह भी अलग-अलग है। इस पर्व को लेकर अलग-अलग कथाएं और मान्यताएं हैं। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विभिन्न प्रदेशों में लोग इसे एकसाथ मगर अलग मान्यताओं के अनुसार मनाते हैं। आइए जानते हैं दीपावली पर्व को लेकर प्रचलित पौराणिक कथाएं और मान्यताएं क्या हैं।
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देश के उत्तरी हिस्से में मान्यता है कि प्रभु श्रीराम अयोध्या वापस आए थे। 14 साल वनवास काटने के बाद जिस शाम को भगवान राम अयोध्या लौटे उस शाम अयोध्या नगर वासियों ने उनके स्वागत में गली-गली में दिए जला दिए। उस दिन के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में हर दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा। यह पर्व अब देश और दुनिया के कई हिस्सों में मनाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामम राक्षस का वध किया था। इसी खुशी में चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली मनाने का चलन है।
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पांच दिवसीय दीपावली पर्व के चौथे दिन पश्चिमी भारत में राक्षस राज बाली के पृथ्वी पर वापस आने की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने उसे दूसरे लोक में भेज दिया था जिसके काफी समय बाद बाली पृथ्वी पर वापस आया था। बाली के लौटने के इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
पूर्वी भारत में कई बार दीपावली के साथ ही काली पूजा भी देखने को मिलती है। कुछ जगहों पर दीपावली को काली पूजो के रूप में ही मनाया जाता है।
दीपावली पर्व देश में चाहे जिस कारण से मनाया जाता हो लेकिन सभी में एक समानता है और वह यह कि बुराई पर अच्छाई की जीत। अंधकार पर प्रकाश की विजय। शायद यही वजह है सबके रीति-रिवाज अलग होने के बाद भी सभी एकता के धागे में बंधे हैं।