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जयपुर

सरकारी “रणनीति” को बनाया ठगी का जरिया

प्रदेश में ठगों ने समग्र विकास के लिए गांव-शहरों के चयन की केंद्र सरकार की
रणनीति को ठगी का जरिया बना लिया

जयपुरAug 19, 2015 / 05:35 am

शंकर शर्मा

jaipur news

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जितेंद्र सिंह शेखावत
जयपुर। प्रदेश में ठगों ने समग्र विकास के लिए गांव-शहरों के चयन की केंद्र सरकार की रणनीति को ठगी का जरिया बना लिया। गांवों में सरकारी योजना में युवाओं को रोजगार के लिए सरपंचों को जैविक कृषि एंड ग्रामीण विकास परियोजना के फर्जी सरकारी परिपत्र के साथ प्रिंटेड फार्म भेजे जा रहे हैं। इसमें परियोजना के लिए गांव के चयन व 5 युवाओं के चुनाव के लिए उन्हें अधिकृत करने की बात कही है। हकीकत में ऎसी कोई योजना नहीं हैं। “सरकारी” दिखने वाले लिफाफे में “परिपत्र” व रोजगार के आवेदन पहुंच रहे हैं। कई सरपंचों ने परिपत्र की “सरकारी भाषा” के झांसे में आ युवाओं से दिल्ली की एजेंसी के नाम 750 रू. के ड्राफ्ट बना आवेदन भिजवा दिए।


बहुत शातिर है ठग : कुछ सरपंचों सेे परिपत्र आने और युवाओं से आवेदन की जानकारी मिलने पर पड़ताल की तो पाया कि ठगी की ऎसी कोशिश कई राज्यों में पहले भी हो चुकी है। ऎसे परिपत्रों को फर्जी बताते उत्तर-पूर्व राज्यों में बकायदा गत अक्टूबर में पुलिस ने झांसे में न आने की एडवायजरी तक जारी की थी। दोनों परिपत्रों में योजना का नाम और ड्राफ्ट मंगवाने वाली एजेंसी के नाम जरूर अलग-अलग हैं। जयपुर के सिद्धि जैविक कृषि अनुसंधान व विकास केंद्र ने भी बस्सी के कचौलिया आदि गांवों के पंच सरपंचों की सूचना पर तहकीकात की तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया। केंद्र के विजय कुमार शर्मा के अनुसार परिपत्र व आवेदन पत्र को गौर से देखने से फर्जीवाड़ा समझ में आ जाता है।

पता चला तो माथा ठोका : निकटवर्ती ग्राम पंचायत लांगडियावास के सरपंच प्रभुदयाल मीणा ने गांव के छह सात युवाओं से ड्राफ्ट बनवा बताए पते पर फार्म भेज भी दिए। फर्जीवाड़े का पता चला तो माथा ठोक लिया। युवाओं को ड्राफ्ट बनवाने व फार्म भेजने में हजार-हजार रूपए की चपत लगी है।

न पता, न ठिकाना
सरपंचों के जरिए आवेदन व पंजीयन शुल्क का डीडी रजिस्टर्ड या स्पीड पोस्ट से अरूण सक्सेना नामक व्यक्ति को “कैथल गेट, पोस्ट चंदौसी, पिन- 244 412” के ठिकाने पर भेजने को कहा है, जबकि डीडी राष्ट्रीयकृत बैंक से “आगम निगम ट्रेडर्स, दिल्ली” के नाम बनवाने को कहा है। स्पष्ट नहीं कि उक्त व्यक्तिकौन है व भुगतान लेने वाली कंपनी का ठिकाना क्या है? एजेंसी का ईमेल-फोन नंबर भी नहीं है।

भाषा से खा रहे गच्चा
“परिपत्र” की भाषा हू-ब-हू सरकारी लगती है। गांव के चयन व सरपंचों को 5-5 युवक या युवतियों के चुनने को अधिकृत करने की भाषा से भरोसा हो जाता है। नियुक्ति उपरांत योग्यतानुसार 11,500 से 14,500 रू. प्रतिमाह “आय” का हवाला दिया है। कई सरपंच ज्यादा पढ़े नहीं हैं। लिहाजा इंटरनेट आदि से हकीकत भी नहीं जान पाए। इसका फायदा उठाते ठगों ने नया तरीका ढूंढ़ा है। कई सरपंच झांसे में आ भी चुके हैं।

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