सडन डेथ कार्डिएक अरेस्ट नहीं होती
यू एन मेहता हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. चिराग जोशी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति में सडन डेथ के कई कारण हो सकते हैं। प्रत्येक सडन डेथ कार्डिएक डेथ नहीं होती है। कुछेक मामलों में ही सडन डेथ का कारण हार्ट अटैक होता है। उन्होंने बताया कि यू एन मेहता हॉस्पिटल में कोरोना काल के पहले हृदय रोग के मरीजों में हार्ट अटैक के मरीजों की औसत संख्या 8 से 11 फीसदी प्रति वर्ष थी जो कोरोना के बाद के वर्ष 2023 तक के आंकड़े में करीब 12 फीसदी देखने को मिली है। इस तरह कोरोना काल के बाद राज्य के कार्डिएक हॉस्पिटलों में औसतन नहींवत वृद्धि देखने को मिली है। विशेषज्ञों के मुताबिक कार्डिएक अरेस्ट और हार्ट अटैक दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं जिसे समझने की जरूरत है।
हार्ट अटैक का दर बढ़ा लेकिन डरने की नहीं सतर्कता की जरूरत
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ भावेश रॉय ने बताया कि आज युवाओं में हार्ट अटैक का दर बढ़ा है। ऐसे में युवाओं को हार्ट अटैक से डरने की जरूरत नहीं बल्कि सतर्कता की जरूरत है। लाइफस्टाइल में आज सबसे ज्यादा बदलाव आ रहा है। इस कारण भी हार्ट अटैक के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
एम्स के डॉक्टर्स का कमाल! 7 वर्षीय बच्चे के फेफड़े में फंसी थी सुई, बिना सर्जरी ऐसे बचाई जान
40 फ़ीसदी लोग शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं
आज 40 फ़ीसदी लोग शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं है और 20 फ़ीसदी थोड़े से एक्टिव है। इसके साथ मोटापा और धूम्रपान के चलते भी हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। धूम्रपान के कारण धमनियों में ब्लॉक होता है जिसके कारण भी अटैक आता है। चिकित्सा शिक्षा के अतिरिक्त निदेशक डॉ आर के दीक्षित ने कहा कि फिलहाल सिर्फ गुजरात में ही नहीं परंतु पूरे विश्व में संक्रामक रोगों और हृदय रोग से जुड़े मामलों की संख्या बढ़ रही है।