रिसर्चर्स ने दी जानकारी
‘इकारस’ पत्रिका में छपे भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक क्रेटर ज्वालामुखी विस्फोट के अलावा किसी उल्का पिंड के अन्य पिंड से टकराने से बनते हैं। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के ग्रह विज्ञान प्रभाग में एसोसिएट प्रोफेसर एस. विजयन ने बताया कि चंद्रयान-3 जहां उतरा, वह अद्वितीय भूगर्भीय स्थान है। वहां कोई दूसरा मिशन नहीं पहुंचा। रोवर से मिलीं चांद की ऐसी पहली तस्वीरें
चंद्रयान-3 के रोवर से चांद की ऐसी पहली तस्वीरें मिलीं, जिनसे पता चलता है कि समय के साथ चांद कैसे विकसित हुआ। जब कोई तारा किसी ग्रह या चांद जैसे बड़े पिंड की सतह से टकराता है तो गड्ढा बनता है। इससे विस्थापित पदार्थ को ‘इजेक्टा’ कहा जाता है। शोध के लेखक विजयन के मुताबिक जिस तरह रेत पर गेंद फेंकने से रेत का कुछ हिस्सा विस्थापित होता है या बाहर उछलकर छोटे ढेर में तब्दील होता है, इजेक्टा इसी तरह बनता है।
160 किमी की अर्ध वृत्ताकार संरचना
शोध के मुताबिक चंद्रयान-3 जिस क्रेटर पर उतरा था, उसका व्यास करीब 160 किलोमीटर है। तस्वीरों से इसके अर्ध वृत्ताकार संरचना होने का पता चला। यह संभवत: क्रेटर का आधा भाग है। दूसरा आधा भाग दक्षिणी ध्रुव ‘ऐटकेन बेसिन’ से निकले इजेक्टा के बीच दब गया होगा। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर उतारा था।