scriptसरोगेसी-IVF मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अंडाणु और शुक्राणु दान करने वाला नहीं बन सकता है बच्चे का जैविक मां-बाप | Bombay High Court's big decision in surrogacy-IVF case, the donor of egg and sperm cannot become the biological parent of the child | Patrika News
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सरोगेसी-IVF मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अंडाणु और शुक्राणु दान करने वाला नहीं बन सकता है बच्चे का जैविक मां-बाप

ART Rule For IVF 2005 : बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर बहुत ही साफ कहा कि कहा कि एआरटी (सहायक प्रजनन तकनीक) क्लीनिकों के लिए 2005 में लागू राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के मुताबिक शुक्राणु और अंडाणु दाता का बच्चे के संबंध में कोई अभिभावकीय अधिकार या कर्तव्य नहीं होगा।

मुंबईAug 13, 2024 / 08:11 pm

Anand Mani Tripathi

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) उपचार के माध्यम से पैदा हुए बच्चों पर अंडाणु या शुक्राणु दान करने वाले माता-पिता अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकते। जस्टिस मिलिंद जाधव ने एक महिला की दलील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसने अपनी बहन और बहनोई के लिए स्वेच्छा से अपने अण्डाणु दान किए थे और बाद में उसने दावा किया कि वह सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुई जुड़वां लड़कियों की जैविक मां है।

एआरटी क्लीनिकों के लिए 2005 का नियम लागू

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर बहुत ही साफ कहा कि कहा कि एआरटी (सहायक प्रजनन तकनीक) क्लीनिकों के लिए 2005 में लागू राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के मुताबिक शुक्राणु और अंडाणु दाता का बच्चे के संबंध में कोई अभिभावकीय अधिकार या कर्तव्य नहीं होगा।

हाईकोर्ट ने पलट दिया निचली अदालत का फैसला

बच्चों से मिलने का अधिकार उचित याचिकाकर्ता अण्डाणुदाता महिला ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने सरोगेसी से जन्मी जुड़वा बेटियों से मिलने की मांग को भी खारिज कर दिया था हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस आदेश को उचित नहीं माना और कहा कि याचिकाकर्ता को जुड़वां बेटियों से मिलने और उनसे संपर्क करने का अधिकार है।

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