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Abortion Right : पति से अलग रह रही महिला करवा सकती हैं गर्भपात: हाईकोर्ट

Abortion Right: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक केस की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया है कि कोई महिला अगर अपने पति से अलग रह रही हो और जिसका तलाक नहीं हुआ हो वह गर्भपात करवा सकती है।

चंडीगढ़ पंजाबJan 15, 2025 / 01:59 pm

स्वतंत्र मिश्र

Pregnent woman

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Abortion Right : पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab and Haryana High Court) ने यह फैसला सुनाया है कि कानूनी रूप से तलाक ले चुकी महिला या जो अपने पति से अलग रह रही हों वह अपना गर्भपात करवा सकती हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी (Justice Kuldeep Tiwari) ने एक 30 वर्षीय विवाहित महिला द्वारा अपने पति की सहमति के बिना अपनी गर्भपात करवाने की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान दी।

शादी के बाद पति और ससुराल के लोग करने लगे टॉर्चर

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में यह तर्क दिया कि उसकी गर्भावस्था चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने योग्य थी। उन्होंने यह बताया कि उनके गर्भ की अवधि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (Medical Termination of Pregnancy (MTP) Act, 1971) में निर्धारित की गई समय सीमा के भीतर आती है। महिला ने अपने वकील के माध्यम से अदालत को इस बारे में सूचना दिया था कि उसकी शादी अगस्त 2024 में हुई थी लेकिन शादी के तत्काल बाद दहेज की मांग को लेकर उसके ससुराल वालों ने क्रूर व्यवहार करना शुरू कर दिया। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि ना सिर्फ ससुराल के लोग बल्कि उसका पति उससे दुर्व्यवहार करता था। उसने पति पर यह भी आरोप लगाया था कि वह बेडरूम के अंतरंग क्षणों को पोर्टेबल कैमरे में रिकॉर्ड करने का प्रयास करता था।

महिला ने प्रेंग्नेंट होते ही अपने पति से कह दी थी ये बात

महिला ने कोर्ट में यह बताया कि वह इन कठिनाइयों को लगातार सहने के बावजूद अपने वैवाहिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाती रही। शादी के लगभग डेढ़ महीने बाद उसे अपनी गर्भावस्था का पता चला और उसने यह बात अपने पति को बताई। महिला ने अपने पति को यह कहा कि वह अभी बच्चे पैदा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है। उसने कोर्ट को यह भी बताया कि इस अवस्था में भी ससुराल वालों और पति का दुर्व्यवहार जारी रहा जिसके चलते उसे काफी शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुंची।

अनचाहे गर्भ को खत्म करने की मांगी थी इजाजत

महिला ने कथित अत्याचारों में कमी नहीं आने के बाद अपने पति का घर छोड़ दिया और मां और पिता के घर वापस चली गई। महिला ने अत्याचार के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा दी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि अनचाहे गर्भ को जारी रखने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा इसलिए उसे कोर्ट की ओर से गर्भपात की अनुमति मिले।

‘अवांछित गर्भ से महिलाओं को हो सकती है दिक्कत’

अदालत ने एक बेंच के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि, “अवांछित गर्भधारण के लिए मजबूर होने पर एक महिला को शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का अनुभव होने की संभावना है। इस तरह की गर्भावस्था के परिणामों से निपटने के लिए और इन परिस्थितियों में बच्चे के जन्म के बाद भी महिला पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इससे जीवन में अन्य अवसरों जैसे रोजगार और अपने परिवार की आय में योगदान करने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है।

कोर्ट ने इस आधार पर दिया गर्भपात कराने की इजाजत

इस केस की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि हालांकि याचिकाकर्ता “विधवा या तलाकशुदा” की श्रेणी में नहीं आती है लेकिन कानूनी रूप से तलाक नहीं होने के बावजूद वह अपने पति से अलग रह रही है इसलिए वह गर्भावस्था समाप्ति कर सकती है। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया कि “याचिकाकर्ता की गर्भावस्था आज लगभग 18 सप्ताह और पांच दिन की है और वह अपनी अवांछित गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए पात्र है।”

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