सवाल: बजट में महिलाओं, युवाओं, गरीब और किसान की बात की गई है, कैसे देखते हैं?
चिदंबरम: वित्त मंत्री ने युवाओं की बात की, लेकिन बेरोजगारी पर कोई बात नहीं की। 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं में बेरोजगारी दर 10 फीसदी, 25 वर्ष से कम आयु के स्नातकों में बेरोजगारी दर 42.3 फीसदी है। उन्होंने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी को स्वीकार नहीं किया और इस पर एक शब्द भी नहीं कहा कि सरकार इस समस्या का समाधान कैसे करना चाहती है। पिछले 10 वर्षों में जानबूझकर उपेक्षा करके, सरकार ने लाखों युवाओं और उनके परिवारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। वहीं महिलाओं की सबसे बड़ी चिंता उनके खिलाफ बढ़ते अपराध और बड़े पैमाने पर अवैतनिक रोजगार हैं। पुरुष कैजुअल कर्मचारी महिला श्रमिकों की तुलना में 48 प्रतिशत अधिक कमाते हैं और नियमित पुरुष कर्मचारी महिलाओं की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक कमाते हैं। इस पर कुछ नहीं कहा। आज हर किसान आपको एक कहानी सुनाएगा कि वह खेती से कैसे नाखुश है। वित्त मंत्री ने कृषि श्रमिकों सहित किसानों की आत्महत्या की संख्या का खुलासा नहीं किया।
सवाल: वित्त मंत्री ने जीडीपी बढ़ने का दावा किया है, क्या कहेंगे?
चिदंबरम: वित्त मंत्री ने जीडीपी के बारे में बात की, लेकिन उन्होंने प्रति व्यक्ति आय के बारे में नहीं बात की। उन्होंने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की बात की, लेकिन उन्होंने ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंक या बच्चों में बड़े पैमाने पर कुपोषण के कारण विकास में बाधा और कमजोरी के उच्च अनुपात के बारे में बात नहीं की। उन्होंने बमुश्किल मुद्रास्फीति का उल्लेख किया, लेकिन उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया कि खाद्य मुद्रास्फीति वर्तमान में 7.7 प्रतिशत है।
सवाल: दस साल में बड़ी संख्या में आइआइटी, आइआइएम, एम्स और विश्वविद्यालय स्थापित हुए हैं।
चिदंबरम: कई शैक्षणिक संस्थानों और एम्स जैसे अस्पतालों की स्थापना के दावों को इस तथ्य से परखना चाहिए कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्र सरकार की ओर से स्थापित संस्थानों में हजारों शिक्षण पद खाली हैं। विशेष रूप से एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित पद। नए अस्पतालों में पर्याप्त डॉक्टर, नर्स और सहायक चिकित्सा कर्मचारी या उपकरण नहीं हैं। 2024-25 के बजट में स्वास्थ्य के लिए आवंटन 1.8 प्रतिशत और शिक्षा के लिए कुल व्यय का 2.5 प्रतिशत है। इतने कम खर्च में कोई भी दावा पूरा नहीं किया जा सकता।
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