प्रत्याशी मतदाताओं की परीक्षा ले रहे
नगर परिषद कार्यालय के बाहर चाय की दुकान पर चुनावी चर्चा छेड़ी तो कांबले दिलीप ने कहा, यहां कोई मुद्दा नहीं है। शरद पवार और अजित पवार ने विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब दोनों अलग-अलग हैं तो मतदाताओं की परीक्षा हो रही है। वसंत गायकवाड़ ने कहा, शरद पवार अपनी उम्र का हवाला देकर गढ़ को बचाने की कोशिश में है। वहीं अजित पवार भी वर्षों पुराने रिश्ते का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं। यहां किसका ‘इमोशनल कार्ड’ कितना मजबूूत है, उसी आधार पर जीत-हार का फैसला होगा। ‘पहले साहेब की बात रखी, अब दादा की बारी’
दोनों प्रत्याशियों से इमोशनल जुड़ाव के बीच मतदाता संतुलन का अपना तक भी दे रहे हैं। किसे वोट देंगे? पूछने पर तुकाराम निकालजे ने कहा, लोकसभा में साहेब की प्रतिष्ठा के लिए सुप्रिया सुले को चुना। अब दादा की इज्जत भी तो रखनी होगी। दादा जीते तो सीएम बन सकते हैं, परिवार तो एक ही है। शरद पवार ने बारामती से ही चुनावी राजनीति शुरू की थी। बाद में यह परंपरागत सीट भतीजे अजित को दे दी। अजित पवार यहां से लंबे समय से विधायक हैं। एनसीपी के टुकड़े होने के बाद यह पहला चुनाव है। शरद पवार ने अजीत पवार के भाई के बेटे युगेंद्र पवार को अजित के सामने उतारा है लेकिन घड़ी का चुनाव चिन्ह अजित के पास है।