अलोंग कस्बे के नजदीक दरका गांव के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को गांव बूढा कहा जाता है। इस पद के लिए चयनित मैदम एते ने बताया कि कुछ साल पहले तक यहां के लोग सेना से दूरी बना कर रखते थे। सेना का डर महसूस होता था। लेकिन अब सेना हमारे से जुड़ गई है तो यह डर खत्म हो गया है। लोगों की भावना ऐसी है कि वे अब कहते हैं कि चीन ने हरकत की तो सेना से पहले उन्हें हमसे टकराना होगा।
अपर प्राइमरी स्कूल के प्रिंसीपल टुमटो एतो ने बताया कि देश के बाकी हिस्सों के बीच दूरियां कम करने में सेना की अहम भूमिका दिख रही है। अरूणाचल प्रदेश का बड़ा सीमा चीन, म्यांमार और भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा है। सेना ने इस प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना ने कुछ गांवों को वाइब्रेट विलेज के रूप में चुना है। जिसके तहत ये सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। अलोंग कस्बे पास स्थित दरका गांव में सेना की ओर से खेल मैदान, बच्चों के स्कूल में खेल सुविधाएं, गांव के लिए कम्पोस्ट खाद बनाने की मशीन जैसी सुविधाएं जुटाई गई हैं।
गांव में ही निपट जाते है अस्सी प्रतिशत विवाद
देश की पंचायतीराज व्यवस्था अरूणाचल प्रदेश में भी मौजूद तो है, लेकिन यहां उसका कुछ अलग है। यह गांव बूढा लाल कोट पहनता है और इसे सरकार ना सिर्फ मान्यता देती है, बल्कि इनके पास न्यायिक अधिकार भी होते हैं। गांव में होने वाले विवाह, जमीन, पशुओं, छोटी-मोटी, मारपीट आदि से जुडे विवाद ये गांव बूढा ही सुलझा देते हैं। इसके लिए पंचायत बुला कर दोनों पक्षों को सुना जाता है और समझौते के जरिए मामले को सुलटाया जाता है। हालांकि इनके फैसले से कोई संतुष्ट ना हो तो उपर अपील कर सकता है।
70 टन के सैन्य साधनों का भार सहन करने लायक बन रहे पुल
चीन सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी दुर्गम इलाकों में मजबूत सड़क नेटवर्क तैयार करने पर तेजी से काम शुरू किया गया है। यहां अब मजबूत रोड पुल और सड़कों का निर्माण किया जा रहा है। जो 70 टन वजनी सैन्य साधनों अर्जुन टैंक आदि का भार भी आवश्यकता पड़ने पर सहन कर सकें। पहले यहां 15 टन, 40 टन क्षमता के वाहनों का भार सहन करने लायक ही पुल बनाए जाते थे।
सीमा सड़क संगठन (बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन) ब्रह्मांक परियोजना के तहत अरुणाचल प्रदेश के 16 जिलों के पहाड़ी इलाकों में कई दुर्गम सड़क परियोजनाओं पर काम रहा है। संगठन के पास सड़क नेटवर्क का बजट 3 हजार करोड़ से बढ़कर करीब 6500 करोड़ हो गया है। इस क्षेत्र में परियोजनाओं की गति अन्य क्षेत्रों की तुलना में कुछ धीमी रहती है। इसका कारण दुर्गम पहाड़ी इलाके और मौसम अनुकूल नहीं होना है। वर्ष के कुछ महीनों में ही यहां या तो काम हो पाता है या तेज गति पकड़ता है।