300 किग्रा तक विस्फोटक ले जाने में सक्षम
इस ड्रोन को एयरो इंडिया में भी प्रदर्शित करने की भी योजना है। किसी कारणवश विलंब हुआ तो भी मार्च से पहले उड़ान परीक्षण की पहली प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। मध्यम ऊंचाई (लगभग 3 हजार फीट) पर लगतार 18 घंटे उड़ान भरने की क्षमता वाला यह ड्रोन अपने साथ 300 किग्रा तक विस्फोटक ले जा सकता है। इससे एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल दागी जा सकती है। इसका वजन लगभग 1700 किग्रा रखा गया है।
तपस ड्रोन से हल्का
रक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस ड्रोन का विकास तपस-बीएच (टैक्टिकल एरियल प्लेटफॉर्म फॉर एडवांस्ड सर्विलांस -बियोंड होराइजन) के आधार पर किया जा रहा है। इसका पहला उड़ान परीक्षण वर्ष 2024 में ही किया जाना था लेकिन, किसी कारणवश परियोजना में विलंब हुआ। तपस की तरह आर्चर-एनजी भी खुफिया, निगरानी, लक्ष्य की पहचान और उसपर प्रहार (इसटार) मिशन में सक्षम होगा। जहां तपस 2850 किलोग्राम है वहीं, आर्चर-एनजी का वजन लगभग 1700 किलोग्राम है। इससे यह अतिरिक्त पे-लोड के साथ उड़ान भरने में सक्षम होगा। विदेशों में निर्यात की उम्मीद
डीआरडीओ को उम्मीद है कि इस ड्रोन की मांग विदेशों से भी होगी और भारत उसका निर्यात कर सकेगा। फिलहाल अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह स्थित त्रि-सेवा कमान (कमांडर-इन-चीफ, अंडमान और निकोबार कमान सीआईएनसीएएन) ने इस नए देसी यूएवी में रुचि दिखाई है।
भारत में वर्तमान में ड्रोन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयास तेज हो रहे हैं। इजरायल से आयात किए गए हेरोन और सर्चर-II जैसे परिष्कृत यूएवी (Unmanned Aerial Vehicles) के जरिए भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया है। हालांकि, स्वदेशी यूएवी (जैसे तापस और आर्चर) की सफलता भारत को आधुनिक समय के ड्रोन-आधारित युद्ध में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।