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जिन्ना की मौत के बाद सरदार ने शुरू किया ‘ऑपरेशन पोलो’, बचाओ बचाओ चिल्लाने लगे हैदराबाद का निजाम, जानिए विलय की संपूर्ण कहानी

जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया लेकिन हैदराबाद का निजाम किसी भी कीमत पर भारत में विलय के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर सहमत नहीं थे। आखिरकार वल्लभ भाई पटेल के अडिग सैन्य कार्रवाई का असर हुआ। निजाम ने भारत सरकार के सामने सरेंडर करते हुए भारत में विलय की घोषणा की।

हैदराबादSep 14, 2024 / 12:28 pm

Anand Mani Tripathi

ब्रिटिश शासन से आजादी तो 15 अगस्त, 1947 को मिल गई थी लेकिन इसके बाद भी भारत को पूर्ण तरह से स्वतंत्र होने में काफी समय लगा। अंग्रेजों ने भारत को दो हिस्सों यानी पाकिस्तान और भारत में बांट दिया था लेकिन 500 से अधिक राजरियासतों को भी बीच मझधार में छोड़ दिया था। उन्हें एकजुट करने की चुनौती उस समय देश के कर्ता-धर्ता के सामने एक बड़ी परेशानी का सबब था।
अंग्रेजों की कूटनीति का फायदा उठाते हुए कई रियासतों ने अकेले और स्वतंत्र रहने का फैसला किया। आजाद भारत के लिए इन रियासतों का जिद पर अड़े रहना सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक रूप से बिल्कुल ठीक नहीं था। लगभग सभी रियासतों को गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एकजुट कर दिया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद इस लिस्ट में सबसे टॉप के बागी थे।
जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया लेकिन हैदराबाद का निजाम किसी भी कीमत पर भारत में विलय के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर सहमत नहीं थे। आखिरकार वल्लभ भाई पटेल के अडिग सैन्य कार्रवाई का असर हुआ। निजाम ने भारत सरकार के सामने सरेंडर करते हुए भारत में विलय की घोषणा की। मगर, क्या यह इतना आसान था?

जिन्ना की मौत ने रास्ता किया आसान

जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ का भारत में विलय एक लड़ाई बाद भले हो गया था लेकिन निजाम झुकने का तैयार न था और जिन्ना आग में घी डालने का काम कर रहे थे। 11 सितंबर 1948 को जिन्ना की मौत हो गई। इसके बाद पूरा तख्ता पलट गया। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के एक दिन बाद 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया। 13 सितंबर 1948। ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन पोलो’ की शुरुआत की और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई।

सरदार पटेल ने हैदराबाद को क्यों कहा था? भारत के पेट में कैंसर

भारत हैदराबाद रियायत को बिना देश में मिलाए चुप नहीं रह सकता था। वह देश के बीचोंबीच ऐसी जगह स्थि​त था कि अगर उसे छोड़ा जाता तो रणनीतिक चूक साबित हो सकता था। ऐसे में भारत ने इसक विलय के लिए राज्य में शांति व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सैन्य कार्रवाई की ठानी। ऑपरेशन की योजना बहुत सावधानी से बनाई गई थी। भारतीय सेना को स्थानीय आबादी का भी समर्थन प्राप्त था, जो निजाम के शासन के अंत को देखने के लिए उत्सुक थे।

पांच दिन पस्त हो गया निजाम

भारतीय सेना मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में 13 सितंबर, 1948 की सुबह 4 बजे हैदराबाद अभियान शुरू कर चुकी थी। पांच दिन के अंदर 17 सितंबर, 1948 की शाम 5 बजे निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम और रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही, हैदराबाद में भारत का पुलिस एक्शन समाप्त हो गया। 17 सितंबर की शाम 4 बजे हैदराबाद रियासत के सेना प्रमुख मेजर जनरल एल ईद्रूस ने भारतीय मेजर जनरल जे एन चौधरी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद हैदराबाद रियासत की भारत संघ में विलय की घोषणा की।

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