नर्मदा की कछार में होने वाला यह बैंगन ा महीन बीज व रेशामुक्त होता है। इसका वजन 5 से 7 किलो तक का हो जाता है, जबकि अन्य बैंगन में मोटा व कडक़ बीज होता है। यह वाद, आकार, पोषक-पाचक तत्वों जैसी कई खासियतों से भरपूर है। इसकी खेती करने वाले किसान पन्नी नौरिया ने बताय कि बैंगन का का यह बीज दशकों पुराना है। हर साल किसान खुद इस बीज को तैयार करते हैं। इसकी बिक्री सीजन के दौरान सामान्य बैंगन से तीन-चार गुना ज्यादा रेट पर होती है। इसे कच्चा भी खाया जा सकता है।
-जीआइ टैग मिलने से बैंगन को अपनी पहचान मिलेगी और कानूनी संरक्षण मिलेगा
इसकी कीमत और महत्व बढ़ जाएगा.
देश-विदेश में बड़ा मार्केट मिल सकेगा
उत्पादक किसानों को आर्थिक मज़बूती मिलेगी। यह होता है जीआइ टैग
जीआइ टैग, वल्र्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइज़ेशन की एक पहल है। यह एक तरह का लेबल होता है, जिसके ज़रिए किसी खास भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पाद को पहचाना जाता है। भारत में, संसद ने साल 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत जीआई टैग की शुरुआत की थी।
बरमान के बैंगन की जीआइ टैगिंग के लिए सभी जरूरी प्रक्रिया हो गई है। अब हियरिंग होना शेष है। हियरिंग पूरी होते ही जीआइ टैग मिल जाएगा।
पद्मश्री डॉ. रजनीकांत सिंह, जीआई टैगिंग
–मिट्टी में जो 17 तत्व होते हैं, वह नर्मदा की तटीय भूमि में पर्याप्त हैं। बरमान के बैंगन में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व हैं, जिसकी वजह मिट्टी व नर्मदा का पानी व तटीय क्षेत्र का तापमान है।
डॉ. एसआर शर्मा, कृषि वैज्ञानिक नरसिंहपुर
डॉ. अखिलेश तिवारी, प्रमुख वैज्ञानिक उद्यान शास्त्र जवाहर लाल नेहरू कृषि विवि जबलपुर