इसमें मातृ भूमि रक्षक सेवा संस्थान नई दिल्ली के बैनर तले नारायणपुर के स्थानीय युवाओं ने मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर माओवादी प्रभावित दण्डवन गांव में पहुंचकर अपनी चौपाल लगाकर स्थानीय ग्रामीणों से सौजन्य मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जाना और जीवन की मूलभूत जरूरत शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार, जीवन उपयोगी सामग्रीयां, स्वच्छता का महत्व विषय पर संवाद स्थापित किया।
इन युवाओं ने सर्वप्रथम सभी उम्र के करीब 200 महिला-पुरुष के बीच संवाद स्थापित करते हुए उनसे खुली चर्चा कर उन्हे शिक्षा और स्वच्छता का महत्व समझाने के बाद कपड़े, चप्पल, चॉकलेटस सहित अन्य सामग्रीयों का वितरण कर ग्रामीणों के सहयोग से दण्डवन स्कूल मैदान में अपने हाथों से भोजन बनाकर ग्रामीणों को खिलाया। स्थानीय युवाओं ने भोजन से पूर्व साबुन और साफ -पानी से हाथ धोने का महत्व बताया। यही नही संवाद स्थापना के दौरान युवाओं ने वनवासी ग्रामीणों को शौचालय का उपयोग करने, खुले में शौच से दूर रहने, शारीरिक साफ-सफाई में ध्यान देने एवं संक्रमित बीमारियों से खुद को बचाने की सलाह व उपाय दोनो बताए। वनवासी बच्चों के साथ चर्चा करते हुए युवाओं ने उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक और प्रेरित किया।
नक्सलियों ने किया था स्कूल भवन को ध्वस्त
दण्डवन गांव में सीआरपीएफ का कैम्प खुलने की खबर सुनने पर माओवादियों ने 2006-07 में शासकीय स्कूल भवन को बम से उड़ाकर क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसके बाद बदलते समय के साथ-साथ करीब एक हजार की आबादी वाले ग्राम दण्डवन में सरकार की मदद से तमाम विकास कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। जबकि दण्डवन से लगे कई अन्य गांव इनमे छिनारी, आतपाल जैसे दर्जनों गांव शामिल हैं, जहां शिक्षा का प्रचार-प्रसार का पहुंच मार्ग का अभाव अब तक बना हुआ है। फि र भी अंचल के वनवासी ग्रामीण बच्चे और उनके पालक रोजगार उन्मूलक शिक्षा के प्रति बड़ी उत्सुकता रखते है।
ग्रामीण स्तर पर ही रोजगार उन्मूलक तकनीकी शिक्षा की उपलब्धता जरूरी है। शासकीय विद्यालय यहां दण्डवन है। जहां अनेक गांवो से आये बच्चे शिक्षा प्राप्त करते है। वहां से आये बच्चों व ग्रामीणों से परिचर्चा में युवाओ ने उनके विचार जानें।
पिता पदस्थ रहे इसलिए इस गांव को चुना
माओगढ़ दण्डवन पहुंचे युवाओं में शशांक तिवारी ने बताया कि वे इस कार्य को करने से बेहद प्रसन्नता महसूस कर रहे है। इस कार्य को करने की प्रेरणा उन्हे आइटीबीपी के युवा अधिकारी प्रमोद तिवारी से मिली। उन्होंने दंडवन ही क्यों चुना इसके लिए उनका कहना था कि, उनके पिता चन्द्रकान्त तिवारी इस गांव में करीब 10 साल तक शिक्षक रहे जब दण्डवन और उसके आसपास के गांव माओवादियों का गढ़ माना जाता था। उनके अनुसार तब माओवादियों की इजाजत के बगैर गांव तक पहुंच पाना असंभव था।