सूत्रों के अनुसार सोशल साइड पर गलत संदेश देकर ठगी/धोखाधड़ी हो या फिर मोटे मुनाफे का लालच देकर चपत लगाने का मामला, ऐसे मामले दिन दूने-रात चौगुने बढ़ते जा रहे हैं। नए-नए पैंतरों के चलते साइबर ठग वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं। पकड़ में आए साइबर ठगों से पूछताछ के दौरान पुलिस को भी कई अजीबोगरीब बातें पता चली। नब्बे फीसदी ने कभी ना वारदात के दौरान अपनी सिम काम में ली ना ही अपना बैंक खाता। और तो और जिन खातों के जरिए रकम जमा कराई जाती है वो अक्सर फर्जी तरीके से किसी अन्य के नाम खुलवाए गए होते हैं। कुछ मामलों में मामूली पैसे लेकर अपने खातों को लोगों ने साइबर ठगों को बेच दिया।
बताया जाता है कि अधिकांश साइबर ठगी दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल,बिहार में ही हुई हैं, इन मामलों की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जांच शुरू हुई तो कई मामलों में संदिग्ध खाते से शुरुआती तीन-चार ट्रांजेक्शन वाले लपेटे में आ गए। नागौर में इनमें तीन-चार बड़े व्यवसायी भी शामिल हैं। कुछ इलेक्ट्रॉनिक आयटम बेचने वालों के खाते में भी इसी तरह के ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की हेराफेरी की जा रही है।
पांच साल में साइबर ठगी/धोखाधड़ी के तेरह सौ से अधिक मामले बताया जाता है कि अकेले नागौर में पिछले पांच साल में साइबर ठगी/ धोखाधड़ी के तेरह सौ से अधिक मामले दर्ज हुए और सौ करोड़ से भी अधिक की ठगी हो चुकी है। डॉलर की ऑनलाइन खरीद के मामले में शहर का एक चिकित्सक डॉ साजिद साइबर ठगों की चपेट में आ गया। करीब दस हजार रुपए की ठगी हुई। करीब पांच महीने बाद मामले का खुलासा नहीं हो पाया है। इसी तरह ऑन लाइन फार्म भरने के बहाने खाता संख्या और एटीएम कार्ड को लेकर बड़ी धोखाधड़ी हुई। पहले तो शातिरों ने बैंक खाते का रजिस्टर्ड नम्बर बदलवाया। बाद में ठगी का खेल चला, दस-बारह दिन में अठारह लाख की ठगी हो गई। लोकेन्द्र के खाते पर मनीष, सुखदेव व देवेंद्र छरंग ने कब्जा कर यह ठगी की। ऐसे ही कई मामले अब तक नहीं खुल पाए हैं।
इन पर रोक ही नहीं लग पाई… बदलते सिम या फिर बेशुमार बैंक खातों पर रोक ही नहीं लग पाई। हालत यह रही कि साइबर ठगों ने आधार कार्ड के जरिए ईकेवाईसी के तहत भी फर्जी सिम जारी करवा लिए। और तो और बैंक खाते भी। यही नहीं बैंक खाते किराए पर लेने का भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। पुलिस की छानबीन में असली शातिर तो पकड़ में नहीं आते, वे ही हाथ लगते हैं जो मामूली से पैसे के लिए अपना बैंक खाता या सिम इनको सौंप देते हैं।वारदातें खुलें भी तो कैसे…सूत्र बताते हैं कि एक लाख से अधिक की ठगी साइबर थाने में दर्ज हो रही है तो इससे कम की अन्य थानों में। बावजूद इसके एक कहावत भी है ना कि मोर नाचता है पर अपने पांव देखकर उदास हो जाता है। अब हकीकत तो यह है कि साइबर एक्सपर्ट उतने हैं ही नहीं, जितनों की जरुरत है। और उस पर कोढ़ में खाज वाली कहावत यह कि साइबर क्राइम के अलावा अन्य काम में ये पुलिसकर्मी उलझे रहते हैं। हालत यह है कि अनुसंधान के बजाय अलग-अलग अवसरों पर ये ड्यूटी निभाते दिख जाते हैं।
इनका कहना यह सही है कि साइबर ठगी में इजाफा हो रहा है। पुलिस पूरी कोशिश करती है, थोड़ा समय लगता है। असल में साइबर क्राइम करने वाले शातिर भी दूसरे राज्यों के होते हैं। साइबर थाने में दर्ज अधिकांश मामले तो सुलझा लिए।
-उम्मेद सिंह, सीओ साइबर थाना, नागौर।