कैर का वैज्ञानिक नाम केपरिस डेसिडुआ है , वहीं खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपीस कीनेरार्या है। दोनों फल राजस्थानी थाली की लजीज डिश में शामिल है। मारवाड़ से निकलकर यह फल बाजार में आए और राजस्थानी प्रवासियों ने इन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। कैर-सांगरी राजस्थान का पारंपरिक व्यंजन है। इसका अचार व सब्जियां विश्व भर में प्रसिद्ध है। मारवाड़ का प्रसिद्ध पंचकूटा जिसमें कैर-सांगरी, कुमटी, बबूल फली, गूंदा या कमलगट्टा व अमचूर शामिल है, औषधीय गुणों से भी भरपूर है। कैर में पाये जाने वाला सैपोनिन कोलेस्ट्राॅल नियंत्रित करता है तथा कैंसर की बीमारी में एंटी बाइटिक का काम करता है। सांगरी फंगल, दर्द निवारक व कफ के ईलाज में कारगर है। सांगरी पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन, जिंक, प्रोटीन और फाईबर से भरपूर है।
कैर, कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीरतीनूं लोकां नह मिलै, तरसै देव अहीर। अर्थात कैर, सांगरी, कुमटिया, काचर, बोर व मतीर मारवाड़ के अलावा दूनिया भर में कहीं नहीं है, इनके लिए देवता भी तरसते है। महाभारत में कैर का वर्णन पिलु और शमी के साथ किया गया है।
पिछले दशक से लगातार बढ रहा जलवायु परिवर्तन, मारवाड़ी मेवों के लिए लिए विष का काम कर रहा है। जलवायु परिवर्तन होने के पीछे मुख्य कारण प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवीय है। प्राकृतिक कारण धीरे-धीरे परिवर्तन करते हैं, लेकिन मानव द्वारा जंगलों की अंधाधुंध कटाई, कारखानों की स्थापना, प्रकृति का अतिदोहन व जैवविविधता को नष्ट करना तीव्र गति से जलवायु परिवर्तन के जिम्मेदार है।
छप्पनियां अकाल में खेजड़ी बनी जीवन रक्षक खेजड़ी बहुआयामी खासियत लिए हुए है। बुजूर्ग ग्रामीण बताते हैं कि 1899-1900 ईसवी में पड़े दुर्भिक्ष छप्पनियां अकाल में खेजड़ी जीवनरक्षक के रूप में काम आई थी। अगर खेजड़ी नहीं होती तो शायद हमारा अस्तित्व ही न होता। लोगों ने खेजड़ी के पत्तों व छाल को पीसकर उसकी रोटी खाकर गुजारा किया था। जानवरों ने खेजड़ी के पत्तों का सहारा लिया था।
विदेशियों की पहली पसंद राजस्थानी कैर-सांगरी मारवाड़ी सूखी सब्जियां, राजस्थान में आने वाले विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है। रेस्टोरेंट में प्रमुखता से कैर-सांगरी व पंचकूटा की मांग रहती है। बीना रखवाली के पेड़, जो देते हैं लाखों की पैदावार
अचरज की बात यह है कि कैर की झाड़ी व खेजड़ी दोनों को किसी प्रकार की रखवाली या देखरेख की जरूरत नहीं है। इसे मानव द्वारा बोया भी नहीं जाता। भेड़-बकरियों द्वारा इनका चारा खाने पर मल के रूप में इनके बीज जमीन पर पड़ते हैं और बरसात के पानी से सिंचित होकर स्वतः उग जाते है। फिर भी यह पेड़ लाखों रूपए की पैदावार देते है। गीले कैर व सांगरी बाजार में 100 से 150 रुपए किलोग्राम बिकती है, वहीं सूखे फल 1500 से 2000 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बिकते है।
इसलिए है मंहगी कैर-सांगरी, कुमटिया, काचर, बबूल फली, गूंदा व साबूत लाल मिर्च अलग-अलग मौसम के फल हैं, इनको इकट्ठा करके, उबालकर सुखाना पड़ता है। सूखने के बाद इनका वजन एक चैथाई से भी कम हो जाता है। इसी प्रक्रिया के कारण यह फल महंगे हो जाते हैं।
जैविक सब्जियों का उपयोग करें दो दशक पहले के लोग जैविक घरेलू सब्जियों जैसे कैर-सांगरी, ग्वारफली, गोटका, कोकला, खेलरी, बड़ी, राबोड़ी का उपयोग करते थे इसलिए उनकी रोगप्रतिरोधक शक्ति अधिक थी। वर्तमान में हरी सब्जियों के रूप में हरा जहर खा रहे हैं क्योंकि सब्जी की फसल को तैयार होकर बाजार में आने तक करीब पांच बार रासायनिक दवाइयों के छिड़काव से होकर गुजरना पड़ता है।
पद्मश्री हिमताराम भाम्भूपर्यावरण प्रेमी पोषक तत्व भरपूर पर अंकुरण क्षमता की कमी कैर के फल में पोषक तत्व भरपूर होते हैं, लेकिन अंकुरण क्षमता की कमी होती है। किसानों को नर्सरी में पौध तैयार कर उन्हें प्रत्यारोपित करना चाहिए, जिससे उत्पादन को बढाया जा सके। अठियासन कृषि विज्ञान केन्द्र में कैर के उन्नत पौध तैयार करने की योजना चल रही है।
भावना शर्मा गृह वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र, अठियासन (नागौर) कई रोगों में रामबाण कैर-सांगरी कैंसर, डाईबिटीज, हृदय रोग, पेट सम्बधी बीमारियों , फंगस, दर्द निवारक सहित कई बीमारियों में कैर-सांगरी कारगर साबित हुई है। इसके निरन्तर सेवन से अच्छे स्वास्थ्य के साथ लम्बी उम्र तक जीया जा सकता है।
डाॅ. गजेन्द्र सिंह चारण प्रदेशाध्यक्ष आयुर्वेद मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान