सूत्रों के अनुसार बढ़ती आबादी के बावजूद पुलिसकर्मी नहीं बढ़े । साधन-संसाधन की कमी के साथ अनुसंधान की तकनीकी प्रणाली ने झमेला खड़ा कर दिया। हर घटना/कार्रवाई पर आडियो-वीडियो रिकॉर्ड करने से लेकर अन्य पेचीदगियां तमाम प्रशिक्षण के बाद अब भी कई अनुसंधान अधिकारी/आईओ की समझ से बाहर है। घटना/कार्रवाई कोई भी हो वीडियोग्राफी करनी है, कई जगह नेटवर्क नहीं पकडऩे से मोबाइल नहीं चल रहे है। इस तकनीकी रिपोर्ट को सबमिट करना तक इनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
सूत्र बताते हैं कि नए कानून लागू होने के बाद डिजिटल एविडेंस कलेक्शन करना है, साक्ष्यों को डिजिटल करना जांच अधिकारियों के लिए मुश्किल काम साबित हो रहा है। असल में अधिकांश एएसआई/हैड कांस्टेबल तकनीकी रूप से इतने सुदृढ़ नहीं हैं जो केस के साक्ष्यों को डिजिटल कर सके। वो इसलिए कि किसी मौके/घटना पर जब आईओ जाता है तो वहां की स्थिति ऐसी नहीं होती कि उसी समय सबकुछ संकलित कर लिया जाए। यह मुश्किल इसलिए भी है कि अनुसंधान की सभी जानकारी क्राइम एण्ड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) के जरिए अपलोड होनी है। अब कई आईओ के पास ऐसे लेटेस्ट मोबाइल तक नहीं है जिनके जरिए यह आसानी से हो। वारदात के समय कई बार तो साक्ष्य एकत्र करने में ही मुसीबत खड़ी हो जाती है।
कहां है लैपटॉप व स्मार्ट फोन नए आपराधिक कानून के लम्बे चले प्रशिक्षण के दौरान सरकार के साथ उच्च अधिकारियों ने भी बढ़े-बढ़े दावे किए थे। कहा तो यह भी गया था कि स्मार्ट फोन के साथ लैपटॉप दिए जाएंगे, ताकि आधुनिक जांच का काम द्रुत गति से हो सके। आईओ समेत अन्य अफसरों को कोई परेशानी ना हो। छह महीने से अधिक समय गुजरने के बाद भी अब तक कुछ नहीं हुआ। पुलिस अफसर खुद कबूलते हैं कि अभी उनके बेड़े में अधिकांश हैड कांस्टेबल/एएसआई बीस-पच्चीस साल पुराने हैं, इनमें से एक चौथाई ही इसमें फिट हो पाए हैं।
कम्प्यूटर में नहीं हो पाए दक्ष… बताया जाता है कि करीब 25 साल से पुलिसकर्मियों को कम्प्यूटर में दक्ष करने की कोशिश की जा रही है। अलग-अलग सत्र में इनको कम्प्यूटर सिखाया भी गया पर वे इस पर निरंतर काम नहीं कर सके। वो इसलिए कि गिने-चुने कम्प्यूटर रहे। वैसे कम्प्यूटरों का आलम आज भी ठीक नहीं है। कई थानों में बाबा आदम के जमाने के कम्प्यूटर चलाए जा रहे हैं। नई तकनीक से अपडेट करना तो दूर ना कम्प्यूटर बढ़ रहे हैं ना ही बदले जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक बीस साल अथवा इससे अधिक समय से पुलिस विभाग में काम कर रहे करीब चालीस फीसदी को अभी कम्प्यूटर भी ठीक ढंग से चलाना नहीं आया है।
बहुत कुछ नहीं बदला… कोतवाली, सदर, खींवसर सहित कुछ थानों को छोड़ दें तो अधिकांश में पुराने जमाने के वाहन/फर्नीचर हैं। सत्तर फीसदी से अधिक एएसआई के पद खाली पड़े हैं। पांचौड़ी जैसा थाना मुख्यालय से सत्तर किलोमीटर दूर है, जबकि गाड़ी सिर्फ एक। ऐसे में अदालती सहित अन्य कार्य पर जब गाड़ी मुख्यालय आए और पीछे से इलाके में अपराध हो तो वाहन की मुश्किल झेलना रोजमर्रा का काम हो गया है। थानों में स्वागत कक्ष बने और पब्लिक राहत के कई नवाचार भी हुए पर कानून व्यवस्था संभालने वाली पुलिस को सुदृढ़ बनाने में अभी बहुत देर लगेगी।
इनका कहना वैसे अधिकांश पुलिसकर्मी तकनीकी प्रणाली से अनुसंधान कर रहे हैं। साधन-संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कम्प्यूटर समेत कुछ परेशानियां भी जल्द दूर होंगी। -रामप्रताप विश्नोई, सीओ नागौर