इसे देखते हुए दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र जोधपुर के निदेशक डॉ. भागीरथ चौधरी ने खजवाना क्षेत्र के खेतों का दौरा कर सौंफ की पारम्परिक पद्धति के बारे में जानकारी ली। चौधरी ने किसानों को सौंफ की वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने का आह्वान किया। किसानों ने बताया कि उन्हें वैज्ञानिक पद्धति का कोई ज्ञान नहीं है। इसके बाद चौधरी ने नागौर-सिरोही किसान समृद्धि यात्रा का आयोजन किया। इसका उद्देश्य सिरोही में वैज्ञानिक पद्धति से होने वाली सौंफ की खेती का अवलोकन करवाकर किसानों को जानकारी देना। यात्रा में कस्बे सहित ढाढरिया खुर्द, देशवाल, ढाढरिया कलां, रूण, सैनणी, खुड़खुड़ खुर्द व कात्यासनी के प्रगतिशील किसान शामिल हुए।
यह होगा फायदा
वर्तमान में जिले के किसान अक्टूबर-नवम्बर में फसल की बुवाई करते हैं तथा मार्च-अप्रेल में फसल की कटाई की जाती है। एक साथ कटाई करने से पके हुए सौंफ के दाने धूप की वजह से सफेद हो जाते हैं। अधिक पकने के कारण एक दाने के दो हिस्से हो जाते हैं। इससे फसल के भाव कम मिलते हैं तथा पैदावार भी कम होती है। वैज्ञानिक पद्धति से मल्टीकट खेती करने पर पैदावार के साथ भावों में भी वृद्धि होगी।
ऐसे करें सौंफ की वैज्ञानिक खेती
सिरोही में प्रगतिशील किसान इशाक अली के फार्म का अवलोकन करवाकर डॉ चौधरी ने किसानों को बताया कि सौंफ की गुणवत्ता व मात्रा को बढ़ाने के लिए सौंफ के बीज को सीधा खेत में नहीं लगाकर उसका रोपण करें। रोपी गई पौध को खेत में निश्चित दूरी पर बनी क्यारिंयों में लगाएं। पौधे को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व देने के लिए देशी खाद का उपयोग करें। सूक्ष्म पोषक तत्वों का विशेष ध्यान रखें।
अगेती लगाई फसल में जनवरी के समय पौधे पर सौंफ के गुच्छे तैयार होने शुरू हो जाते हैं। जैसे-जैसे गुच्छे तैयार होते हैं वैसे ही गुच्छों को तोड़कर छायादार छपरे में लगी रस्सियों के ऊपर सुखाते रहे। चार से पांच दिन सूखने के बाद उन्हें मशीन से निकाल लें । इस प्रक्रिया से एकदम हरी व सुगंधित सौंफ प्राप्त होगी। यह प्रक्रिया पांच से छह बार या उससे अधिक की जा सकती है। इससे सौंफ की गुणवत्ता व मात्रा में कई गुना वृद्धि होगी।
यह रहे मौजूद
इस दौरान दो दर्जन किसानों के साथ नाबार्ड के डीडीएम दिनेश प्रजापत, काज़री वैज्ञानिक डॉ कमला चौधरी , कृषि विज्ञान केंद्र सिरोही की डॉ कामिनी पराशर और कृषि निर्यात केंद्र के डॉ नरेश चौधरी सहित कई लोग मौजूद रहे।