खजवाना (नागौर). देश-विदेश में महक रही नागौरी पान मैथी को नोटिफाइड कमोडिटी में शामिल करने के बाद अब इसकी गुणवत्ता सुधार पर अनुसंधान शुरू हो गया है। दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर व राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र अजमेर द्वारा नागौरी पान मैथी पर यह अनुसंधान किया जा रहा है। इस अनुसंधान के तहत नागौरी पान मैथी के बीज की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रयास चल रहे हैं । साथ ही पान मैथी की कटाई व सुखाने की पद्धति पर भी काम किया जा रहा है, ताकि किसान कम उर्वरक डालकर पान मैथी की अधिक पैदावार ले सकें। उम्मीद है कि जल्द ही किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीज कृषि उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकेंगे।
मण्डी का इंतजार
अप्रेल 2020 से पहले तक राज्य की नोटिफाई कमोडिटी में शामिल नहीं होने से पान मैथी को फसल का दर्जा नहीं था। वर्ष 2020 में पान मैथी को राज्य की नोटिफाई कमोडिटी में शामिल करने के बाद इसे फसल का दर्जा ताे मिल गया, लेकिन किसानों का पान मैथी की बिक्री के लिए मण्डी का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है। हालांकि मूण्डवा में पान मैथी की मण्डी के लिए जमीन आवंटित हो चुकी है पर क्रय-विक्रय कब होगा इसका फिलहाल कोई अंदाजा नहीं है।ताऊसर से शुरू हुआ पान मैथी का सफर
1970 के करीब नागौर के ताऊसर से शुरू हुआ नागौरी पान मैथी के बुवाई का सफर समय के साथ जिले के कुचेरा, खजवाना, जनाणा, रूण, इन्दोकली, ढाढरिया कलां, देशवाल, खुड़खुड़ा सहित दर्जनभर गांवों में पहुंच गया। शुरूआती दौर में ताऊसर के किसान घरों में मसाले के रूप में उपयोग के लिए कुछ क्यारियों में पान मैथी उगाते थे। घरों से निकलकर यह लोकल बाजार में पहुंची। जहां से इसका जायका देशभर में फैलने लगा और देखते ही देखते 4000 से 4200 वर्ग हेक्टेयर में पान मैथी की बुवाई होने लगी है। किसानों के लिए विकट समस्या यह है कि इसका मार्केट नहीं होने से फसल का सही मूल्य नहीं मिल रहा।
सड़क किनारे हो रही खरीद, मनमाने भाव लगाते व्यापारी
नागौरी पान मैथी संभवतया देश की एकमात्र ऐसी फसल है जिसकी खरीद मण्डी में नहीं होकर सड़क किनारे होती है। मण्डी के अभाव में व्यापारी मनमाने भाव लगाते हैं। मजबूरन किसानों को औने-पौने दामों में पान मैथी बेचनी पड़ रही है। स्थिति यह है कि एक जगह भाव बताकर किसान आगे निकल जाता है और कारणवश वापस उसी व्यापारी के पास फसल लेकर आता है तो उसी फसल के भाव प्रति किलो 10 से 20 रुपए तक कम कर दिए जाते हैं।
जीआई टैग की दरकार
नागौरी पान मैथी को जीआई टैग की दरकार है। जीआई टैग का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेट से है, जिसे भौगोलिक संकेत के नाम से जाना जाता है । यह संकेत मिलने पर लोकप्रिय उत्पाद नागौरी पान मैथी का उपयोग इस भौगोलिक क्षेत्र के अलावा दूसरे लोग नहीं कर पाएंगे। इससे नागौरी पान मैथी की उपयोगिता व मांग दोनों में वृद्धि होगी।
इनका कहना
बड़े यार्ड का बहाना बनाकर बच रही सरकारतत्कालीन खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल ने विधानसभा में मांग उठाकर पान मैथी को नोटिफाई कमोडिटी में शामिल करवाया था। वर्तमान में भी विधानसभा में नागौरी पान मैथी की मण्डी की मांग कई बार उठाई गई , लेकिन सरकार बड़े यार्ड की आवश्यकता का हवाला देकर बचने की कोशिश कर रही है। जीआई टैग के लिए प्रयास जारी है। पान मैथी कई व्यंजनों की महक को बढाकर खाने को लजीज बनाने के लिए प्रसिद्ध है । इंटरनेशनल फूड चेन व 5 स्टार होटलों में भी नागौरी पान मैथी की मांग बढ रही है।
नारायण बेनीवाल, विधायक, खींवसर।मसाला बोर्ड की सूची में शामिल करवाना प्राथमिकता
नागौरी पान मैथी के बीज पर अनुसंधान कार्य चल रहा है। भारत सरकार के मसाला बोर्ड की सूची में इसे शामिल करवाना हमारी प्राथमिकता है। जीआई टैग के लिए भी केन्द्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। पान मैथी के कारण नागौर में एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय व उद्योग का विकास बिना किसी सरकारी सहायता के हुआ है। इसका लाभ किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पर तेजी से काम किया जा रहा है।भागीरथ चौधरी, निदेशक, दक्षिण एशिया जैवप्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर।