पत्रिका की ओर से सिक्कों के संबंध में अभियान चल रहा है। इस बीच यह रोचक जानकारी भी मिली कि सिक्कों को छोड़ों अब कागज के नोट तक गायब हो रहे हैं हालांकि इन पर कोई अघोषित प्रतिबंध भी नहीं लगा पर बाजार में एक-दो-पांच के बाद अब दस के नोट भी दिखना लगभग बंद होने लगे हैं। ऐसे में लोग इससे भी परेशान दिख रहे हैं।
रविवार को इस संदर्भ में लोगों से बातचीत में सामने आया कि किसी भी हाल में हो, कोई भी सिक्का चलन से बाहर कैसे कर दिया गया? लोगों ने इसे स्वीकार तक कर लिया, और तो और इसके खिलाफ बोलने के लिए कोई जनप्रतिनिधि/जिमेदार आगे तक नहीं आया। आखिर समाज में रोजमर्रा की खरीदारी में ये सिक्कों को कैसे आउट डेटेड कर दिया गया। लोग हर हाल में सिक्के चलन में लाना चाहते हैं।
प्रयास हों तो चलेंगे..
एक-दो-पांच के बाद दस का नोट तक दिखना कम हो रहा है। कम कीमत के नोट ब्लॉक होने पर सिक्कों की आवश्यकता ज्यादा महसूस होने लगी है। लोगों को समझाना होगा, बैंक सिक्के देता है तो उसे वापस भी ले तो ये सामान्य चलन का हिस्सा बन जाएंगे। धर्माराम भाटी, अध्यक्ष श्रीकिराणा मर्चेन्ट एसोसिएशन, नागौर पहल सब मिलकर करें
सिक्कों का चलन यूं ही चलते-चलते बंद हो जाना भी कम हैरत की बात नहीं है। ना लोगों ने ध्यान दिया ना ही इसके खिलाफ आगे आए। अब कारोबारी तो सिक्कों का इस्तेमाल करना चाहता है और आम आदमी भी, थोड़ा बैंक भी सहयोग करे तो कोई मुश्किल नहीं।
भोजराज सारस्वत, प्रांतीय उपाध्यक्ष, लघु उद्योग भारती
सिक्के फिर से चलें, इसके लिए सभी शहरवासियों को एकजुट होना पड़ेगा। जनप्रतिनिधि भी अपनी जिमेदारी समझें, यह हर आदमी की मुश्किल है। अपनी ही मुद्रा को हम चला नहीं पा रहे और सभी जिमेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। समर्थ पदों पर बैठे लोगों को आगे आना चाहिए।
दिलफराज खान, व्यापारी, सदर बाजार
जनता को पुरजोर इसके लिए डिमाण्ड करनी होगी। हर आम आदमी को इसके लिए परेशान होना पड़ता है, अब हर कोई तो डिजिटल बैंकिंग का उपयोग नहीं करता। इस बड़े मुद्दे को भी लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। प्रयास करेंगे तो सिक्के फिर से चलेंगे।
मोहमद साहिल, व्यापारी, बी रोड
सिक्के बंद हुए तो जनता यूं ही लूटी जाने लगी, दुकानदार सिक्के वापस करने के बजाय चॉकलेट/टॉफी देने लग गए। आमजन को भी परेशानी हो गई। अब सिक्के तो अपने देश की मुद्रा है तो फिर इन्हें अवैध कहकर बंद करने वाले हम कौन? इन्हें फिर से चालू होना चाहिए।
सपना टाक, गृहिणी, कुहारी दरवाजा