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नागौर

पांच साल में प्रदेश में 738 दवाओं के सैम्पल फेल, कार्रवाई मात्र छह फीसदी के खिलाफ

77 प्रकरणों में ही जारी हो पाई न्यायालय में वाद दायर करने की अभियोजना स्वीकृति, मात्र 43 प्रकरणों में दवा निर्माण की अनुमति की निरस्त

नागौरNov 05, 2024 / 12:13 pm

shyam choudhary

नागौर. प्रदेश में नकली दवाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से खानापूर्ति की जा रही है। विभाग की टीमें दिखाने के लिए दवाओं के सैम्पल तो लेती हैं, लेकिन जांच में फेल (अवमानक) होने वाले दवाओं की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नाम मात्र की ही होती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में एक जनवरी, 2019 से 31 दिसम्बर, 2023 तक 738 दवाओं के नमूने अवमानक कोटि के घोषित हुए हैं, लेकिन इनमें से मात्र 43 प्रकरणों में दवा निर्माण की अनुमति निलंबित/निरस्त की गई है, जो पूरी छह फीसदी भी नहीं है।
इसी प्रकार पिछले पांच साल में कुल 89 औषधियों के नमूने नकली पाए गए, जिनमें से 25 प्रकरणों में न्यायालय में वाद दायर किए गए हैं, 41 प्रकरणों में संबंधित निर्माता फर्मों सहित दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध अभियोजना स्वीकृति जारी हो पाई है, जबकि शेष 23 प्रकरण विभाग में विभिन्न स्तरों पर जांच/अनुसंधान के लिए एवं संबंधित निर्माता फर्मों के राज्य औषधि नियंत्रकों के स्तर पर प्रक्रियाधीन हैं। यह जानकारी राज्य सरकार ने विधानसभा एक विधायक की ओर से लगाए गए सवाल के जवाब में दी है।
अधिकतर प्रकरण अनुसंधान में लम्बित

चिकित्सा विभाग ने बताया कि पांच साल की अवधि के दौरान अवमानक कोटि घोषित 738 प्रकरणों में 528 प्रकरण जांच/अनुसंधान के लिए प्रक्रियाधीन हैं। 90 प्रकरणों में न्यायालय में वाद दायर किया गया है, जबकि 77 प्रकरणों में न्यायालय में वाद दायर करने के लिए अभियोजना स्वीकृति जारी हुई है।
कार्रवाई के लिए प्रकोष्ठ का गठन

राज्य सरकार ने बताया कि नकली दवाओं के निर्माण व क्रय-विक्रय पर रोकथाम के लिए नकली दवा नियंत्रण प्रकोष्ठ का गठन किया गया है, जो गोपनीय सूचना तंत्र/शिकायत/संदेह के आधार पर कार्रवाई करता है।
कई दवाएं हो चुकी एक्सपायर, अब नहीं हो सकेगी कार्रवाई

विभाग की ओर से पांच साल में पकड़ी गई नकली एवं अवमानक दवाओं की कार्रवाई में इतनी देरी हो रही है कि कई दवाएं तो एक्सपायर हो चुकी हैं। चिकित्सा विभाग के ढीले रवैये के चलते जांच प्रक्रिया में इतना समय बर्बाद हो जाता है कि दवा कंपनियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती है। विभाग के लचर रवैये से आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है।

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