कृषि विभाग के अधिकारियों व विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले वर्षों में फसल पकने के समय होने वाली बेमौसम बारिश से मूंग की फसल में खराबा ज्यादा होता है, जिसके बाद किसान को बाजार में आधे दाम भी नहीं मिल पाते हैं और चारा भी खराब हो जाता है। बाजार में इन दिनों मूंग के भाव 5 हजार प्रति क्विंटल के आसपास हैं। सरकार भी दागी मूंग को नहीं खरीदती। वहीं दूसरी तरफ ग्वार के भावों में इस वर्ष तेजी आई है और ग्वार खराब होने के बाद भी भावों में ज्यादा अंतर नहीं आता है।
सरकार भले ही एमएसपी बढ़ाकर किसानों की आय दुगुनी करने की बात करती है, लेकिन जब मूंग बारिश में भीगकर दागी हो जाता है तो किसान को खरीद केन्द्र से लौटा दिया जाता है और फिर बाजार में आधे दामों में बेचना पड़ता है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार गत वर्ष जिले में समर्थन मूल्य पर मूंग बेचने के लिए 21,939 किसानों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया और 19,660 किसानों को तारीख भी आवंटित की गई, लेकिन मात्र 6,769 किसानों का मूंग ही खरीदा गया।
खरीफ-2021 में फसलें खराब होने के बावजूद न तो किसानों को कृषि आदान-अनुदान का भुगतान किया गया और न ही दागी मूंग की समर्थन मूल्य पर खरीद हुई। सूत्रों के अनुसार गत वर्ष जिले में मूंग के कुल उत्पादन का 10 फीसदी मूंग भी समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा गया, जिसके कारण किसानों को 7200 रुपए प्रति क्विंटल बिकने वाला मूंग 4 से 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल बेचना पड़ा।
यूं समझें मूंग और ग्वार की बुआई का गणित सरकार केवल घोषणा करती है
इस बार दलहन फसलों की बुआई कम हुई है, इसके दो-तीन कारण हैं। एक तो मूंग खराब होने पर आधे दामों में बिकता है, जबकि ग्वार के भावों में मात्र दो-तीन रुपए का फर्क आता है। इसके साथ इस बार चारा काफी महंगा बिका और ग्वार का चारा अच्छा होता है। तीसरा, सरकार एमएसपी पर मूंग खरीद की बात तो करती है, लेकिन धरातल पर खरीद बहुत कम होती है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। ग्वार से खेत उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है
– भोजराज सारस्वत, दाल मील संचालक, नागौर
इस बार हमने जिले में मूंग की बुआई का लक्ष्य 6.40 लाख हैक्टेयर का रखा था, जिसके विरुद्ध अब तक 4.87 लाख हैक्टेयर में बुआई हुई है। इसी प्रकार ग्वार की बुआई 90 हजार हैक्टेयर के लक्ष्य की तुलना में 2.12 लाख हैक्टेयर में बुआई हुई है। गत वर्षों में फसल पकने के समय हुई बारिश से मूंग काफी खराब हुआ था, इसके चलते किसान अब ग्वार की खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।
– हरीश मेहरा, उप निदेशक, कृषि विभाग, नागौर