सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक इसकी स्वीकृति के लिए कई बार ज्ञापन देकर मांग उठाई पर कुछ असर नजर नहीं आ रहा। करीब सत्तर करोड़ 29 लाख की राशि का बजट का प्रस्ताव नए न्यायालय भवन के लिए सरकार को अप्रेल में ही भेज दिया गया था। बारह न्यायालय भवन, बारह ही राजकीय आवास, 101 अधिवक्ता चेम्बर्स, अण्डर ग्राउण्ड पार्किंग समेत अन्य सुविधाओं के इस बजट प्रस्ताव पर सरकार गौर नहीं फरमा रही। अधिवक्ताओं में भी सरकार की इस लेट लतीफी को लेकर गहरी नाराजगी है। नए न्यायालय भवन के लिए जमीन मिले करीब साढ़े तीन साल हो गए। न्यायालय भवन का डिजाइन भी तैयार हो गया। बजट स्वीकृति नहीं होने के चलते काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है।
असल बात यह है कि नागौर शहर का न्यायिक परिसर काफी छोटा पडऩे लगा है। एक पोक्सो कोर्ट और एडिशनल मुंसिफ-कोर्ट तो पुराने अस्पताल में चल रहे हैं, शेष छह नागौर न्यायिक क्षेत्र में। रोजाना अनगिनत पेशियां, हालत यह है कि गिने-चुने वाहन तक पार्क नहीं हो पा रहे। वकीलों के बैठने तक को पर्याप्त जगह नहीं है। ऐसे में लम्बे समय से न्यायालय भवन के विस्तार की मांग उठ रही थी। अब जमीन तो मिले काफी टाइम हो गया पर बजट कब स्वीकृत होगा। कुछ वकील तो यहां तक कह रहे हैं कि पता नहीं अभी सरकार से बजट स्वीकृत होने में और कितना समय लगेगा। इस समय नागौर (कुचामन-डीडवाना) जिले भर में करीब तीन दर्जन अदालत चल रही है।
मुख्यमंत्री समेत एक दर्जन मंत्रियों तक को बताई पीड़ा सूत्र बताते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता राधेश्याम सांगवा, न्यायालय स्थापना समिति के सचिव कालूराम सांखला ही नहीं जिला अधिवक्ता संघ के पदाधिकारियों के साथ अनेक वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बजट स्वीकृति के लिए सरकार को कई बार पत्र भेजे। मुख्यमंत्री भजलाल शर्मा के गोगेलाव प्रवास के दौरान भी उन्हें इस संबंध में पत्र दिया। इसके अलावा भी नागौर आने वाले हर मंत्री तक अधिवक्ताओं की इस मुश्किल के निस्तारण की मांग की गई पर सरकार की ओर से अभी तक कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। पहले इस न्यायालय भवन पर करीब सौ करोड़ खर्च होने का अंदाजा था, बाद में हाईकोर्ट जोधपुर की ओर से करीब सत्तर करोड़ के बजट को हरी झण्डी देकर राज्य सरकार के पास भेजा गया, ताकि नया न्यायालय भवन बने और अधिवक्ताओं की मुश्किल हल हो।
परेशानियां और भी बहुत… सूत्रों का कहना है कि करीब चार साल पहले मेड़ता में चल रहे पोक्सो के साथ एससी-एसटी कोर्ट को यहां स्थानांतरित करने की मांग उठी थी। पोक्सो कोर्ट तो स्थानांतरित हो गया पर एससी-एसटी कोर्ट नहीं आ पाया। हालत यह है कि श्रीबालाजी/पांचौड़ी ही नहीं जसवंतगढ़ समेत दूरदराज थाना इलाके के लोगों को एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों के लिए मेड़ता जाना पड़ता है। मेड़ता में चल रही डीजे कोर्ट को नागौर शिफ्ट करना था, इसके फरवरी 20 को आदेश भी हो चुके थे। बाद में सरकार ने दोबारा विचार करने की बात कहकर इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया। अब डीजे/एससी-एसटी कोर्ट का प्रस्ताव भी लम्बित है। नए न्यायालय भवन बनने से तमाम परेशानियां भी दूर होंगी।
इनका कहना बजट स्वीकृति के लिए बार-बार प्रयास जारी है। मुख्यमंत्री के साथ कई मंत्रियों को इस संदर्भ में ज्ञापन देकर गुहार लगाई जा चुकी है। अब सरकार को त्वरित निर्णय करना चाहिए।
-कालूराम सांखला, सचिव न्यायालय स्थापना समिति, नागौर। पोक्सो अलग, बाल न्यायालय अलग और अन्य अदालतें अलग, तीन जगह अदालतें चल रही हैं। वकीलों की परेशानी को समझना होगा, नागौर कोर्ट में कम पड़ती जगह व पार्किंग से परेशानी भी है। सरकार इसमें क्यों देरी कर रही है।
-पीर मोहम्मद, वरिष्ठ अधिवक्ता, नागौर।