लंच टाइम में स्कूल से घर लौटते ही 10वीं की छात्रा ने किया सुसाइड, देखकर मां के उड़े होश
सूत्रों के अनुसार जिले के करीब तीन हजार से अधिक स्कूलों का यह हाल है। कई स्कूल तो एक अथवा दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। हालत यह है कि दसवीं-बारहवीं का कोर्स पूरा कराने के लिए शिक्षकों की वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ रही है। हर बार शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए शिक्षक संगठनों की ओर से आंदोलन होते हैं पर ये महज आश्वासन के बाद समाप्त हो जाते हैं। हाल ही में दसवीं-बारहवीं परीक्षा में मानक से भी कम परिणाम देने पर चार संस्था प्रधान को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
सूत्र बताते हैं कि प्रिंसिपल के 836 स्वीकृत पदों में से 523 पर कार्यरत हैं वहीं वाइस प्रिंसिपल को लेकर तो हालात बहुत खराब हैं। स्वीकृत वाइस प्रिंसिपल के 592 में सिर्फ बीस ही कार्यरत हैं जबकि 572 पोस्ट खाली पड़ी हैं। यही नहीं स्कूली व्याख्याता/शिक्षक के पद भी भारी संख्या में खाली हैं। हिंदी के 584 में से 104 तो अंग्रेजी के 197 में से 47 पद खाली चल रहे हैं। इतिहास, भूगोल के साथ राजनीति विज्ञान विषय के शिक्षक भी काफी कम हैं। राजनीति विज्ञान के 70, इतिहास के 97 तो भूगोल के 93 पद खाली हैं। शारीरिक शिक्षा के भी पद खाली चल रहे हैं, प्रबोधक हों या शिक्षाकर्मी, पदों का तो टोटा बना हुआ है।
बेरोजगारों के लिए खुशखबरी, कांस्टेबल और स्टेनोग्राफर की निकली भर्ती, फटाफट करें आवेदन
असर परिणाम पर
सूत्रों की मानें तो सरकारी शिक्षकों की किल्लत से परिणाम बिगड़ रहा है। पिछले पांच साल में विषय के अनुरूप गणना करें तो परिणाम में अध्यापकों की किल्लत से तीन से पांच फीसदी की गिरावट आ रही है। शिक्षकों की तबादला नीति में हो रहे दांवपेंच भी इसका कारण बताए जाते हैं।
पढ़ाई का आलम ऐसा
सूत्रों का कहना है कि नागौर समेत कुछ अन्य शहरी/कस्बाई इलाकों को छोड़ दें तो सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की किल्लत साफ नजर आती है। मकराना के पास एक राउप्रा विद्यालय में केवल तीन शिक्षक हैं, ऐसे में आठ कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाएं कैसे? आलम यह है कि गणित/अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापक नहीं हैं। ऐसा ही हाल मौलासर, पीलवा, खजावाना, मेड़ता समेत जिले के कई क्षेत्र में चल रहे स्कूलों का है। यहां तक कि सीनियर सेकण्डरी स्कूलों में विषय अध्यापक की तंगी खत्म नहीं हो पा रही।
इनका कहना
शिक्षकों की किल्लत दूर करने के प्रयास चल रहे हैं। कुछ बरसों में यह स्थिति काफी सुधरी। अभी प्राथमिक शिक्षकों के दस्तावेज के बाद स्कूलों को कुछ और राहत मिलेगी।-बस्तीराम सांगवा, एडीपीसी, समग्र शिक्षा नागौर