बड़ी खबर: कैराना-नूरपुर उपचुनाव के लिए सपा और रालोद प्रत्याशी घोषित, जानिए किसको कहां से मिला टिकट
28 मई को यहां दोनों सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव के लिए मतदान होगा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि रालोद के टिकट पर भी सपा नेता तबस्सुम हसन ही चुनाव लड़ेंगी। जबकि बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा ने नईमुल हसन को प्रत्याशी घोषित किया है। नईमुल हसन 2017 के विधानसभा चुनाव में दिवंगत भाजपा विधायक लोकेंद्र चौहान से 12736 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।कैराना उपचुनाव के लिए जब दो दर्जन MLA, 3 सांसद और 4 मंत्रियों के साथ पहुंचा ये नेता तो मच गई खलबली
आपको बता दें कि तबस्सुम हसन के बेटे नाहिद हसन कैराना विधानसभा सीट से अभी सपा के विधायक हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में नाहिद सपा प्रत्य़ाशी थे और उन्हें तब भाजपा प्रत्य़ाशी (कैराना के दिवंगत सांसद) हुकुम सिंह से करारी हार का सामना करना पड़ा था। दरअसल इस सीट पर हुकुम सिंह ने मोदी लहर में 236828 वोटों से जीत दर्ज की थी। उस समय मुस्लिम वोट बंटना भी भाजपा की जीत की वजह माना जाता है।यहां दिलचस्प बात यह है कि सपा ने रालोद को गठबंधन के बहाने कैराना सीट तो दे दी लेकिन इस सीट से भी रालोद के टिकट पर सपा नेता तबस्सुम हसन को ही प्रत्य़ाशी घोषित किया गया है। माना जा रहा है कि इससे यह साबित होता है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक तीर से दो निशाने साध दिए हैं। इसके पीछे यह रणनीति है कि रालोद के टिकट पर सपा नेता के चुनाव लड़ने से सपा के लोग भी नाराज नहीं होंगे क्योंकि रालोद से गठबंधन न होने की स्थिति में भी सपा से तबस्सुम हसन को ही टिकट मिलना तय था।
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गौरतलब है कि सांसद हुकम सिंह के निधन के बाद कैराना सीट खाली हुई थी, जबकि नूरपुर सीट भाजपा विधायक लोकेंद्र चौहान के निधन से खाली हुई है। माना जा रहा है कि सहानुभूति का लाभ लेने के लिए बीजेपी उनकी बेटी मृगांका सिंह को कैंडिडेट बनाने की तैयारी में है। वहीं, बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट से भाजपा दिवंगत विधायक लोकेंद्र चौहान की पत्नी अवनी सिंह को टिकट देने की तैयारी में है। दोनों सीटों पर 28 मई को मतदान होना है, जबकि वोटों की गिनती 31 मई को होगी।सियासी जानकारों के मुताबिक रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह तबस्सुम को आगे कर चौधरी चरण सिंह के वक्त के जाट-मुस्लिम समीकरण को साधना चाहते हैं। इसके जरिए 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट-मुस्लिम के बीच पैदा हुई खाई को भरने की कोशिश होगी। इसके लिए अजीत और जयंत दो महीने से सद्भभावना मुहिम चला रहे हैं। इसके तहत उन्होंने कई मुस्लिम नेताओं को रालोद में शामिल भी किया है। दोनों ही सीटों पर विपक्षी एकता के बाद भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।