अब LGBTQ और लिव इन पार्टनर्स को भी मिलेगा ग्रुप इंश्योरेंस का फायदा, सिटी ग्रुप ने की नई पहल
भारत में अनमैरिड लिव इन पार्टनर्स और lgbtq पार्टनर्स को हेल्थ पॉलिसीज में वरीयता नहीं मिलती लेकिन अब सिटी ग्रुप ने अपने ऐसे एंप्लॉयर्स को भी हेल्थ इंश्योरेंस देने का फैसला किया है।
अब LGBTQ और लिव इन पार्टनर्स को भी मिलेगा ग्रुप इंश्योरेंस का फायदा, सिटी ग्रुप ने की नई पहल
नई दिल्ली: अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक और फाइनैंशल सर्विसेज कॉरपोरेशन सिटीग्रुप इंक ( city group ) ने एक नई पहल की है । दरअसल कंपनी ने भारत मेॆ अपनी ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी ( Insurance policy ) या फैमिली हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज में लिव-इन ( live in ) या अनमैरिड पार्टनर्स और LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) पार्टनर्स को भी शामिल करने का फैसला किया है। सिटी इंडिया प्राइड नेटवर्क के बिजनस स्पॉन्सर पद्मजा चक्रवर्ती ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि, ‘हम कर्मचारियों के पार्टनर्स को मेडिकल इंश्योरेंस बेनिफिट दे रहे हैं। इसमें समलैंगिक या अन्य पार्टनर शामिल हैं, जो एक साथ रहते हैं।’
एथनॉल फ्यूल के बारे कितना जानते हैं आप, जानें पेट्रोल-डीजल के इस विकल्प LGBTQ से कतराती हैं कंपनियां – देखा जाता है कि अक्सर कॉर्पोरेट कंपनियां अनमैरिड पार्टनर्स और LGBTQ को इंश्योरेंस स्कीम में शामिल करने से डरती रहती हैं। दरअसल इन कंपनियों का कहना है कि भारत के परप्रेक्ष्य में अनमैरिड कपल के लीगल स्टेटस और राइट्स को लेकर तस्वीर साफ नहीं होती है, इसलिए कंपनियां उन्हें इंश्योरेंस कवर देने से झिझकती हैं। हलांकि गोदरेज ग्रुप, अक्सेंचर और आईबीएम जैसी कई कंपनियां एलजीबीटीक्यू एंप्लॉयीज के जोड़ीदारों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस ऑफर करती हैं। लेकिन ज्यादातर कंपनियां लिव इन पार्टनर्स और समलैंगिक पार्टनर्स को ये फैसिलिटी नहीं देती हैं।
वीडियो में देखें tata hexa के बंद होने की पूरी सच्चाई इन शर्तों पर मिलेगी पॉलिसी- खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अंशुल प्रकाश का कहना है कि हमारे देश में इस का दुरूपयोग हो सकता है इसीलिए हम अपने क्लाइंट्स को पॉलिसी देने से पहले कुछ शर्त रखने की सलाह देते हैं क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। और भविष्य में किसी भी तरह का मनमुटाव होने पर कंपनी को एक एम्प्लॉयर के रूप में एक स्टैंड लेना पड़ेगा। इसीलिए हम अपने क्लाइंट को सलाह देते हैं कि पहले यह देखे कि जो कर्मचारी इंश्योरेंस का फायदा लेना चाहता है, वह दो-तीन साल से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा हो।’
दुरूपयोग होने की है संभावना- लिव इन पार्टनर्स का कॉंसेप्ट भारत के लोगों के लिए नया है और यह पश्चिमी देशों की तरह मैच्योर नहीं हुआ है ऐसे में इसके दुरूपयोग के चांसेज बढ़ जाते हैं, खास-तौर पर जब लिव-इन पार्टनर की परिभाषा ही साफ न हो।