बिहार की समता पार्टी के अध्यक्ष उदय मंडल ने ‘मशाल’ को अपने दल का निशान बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में भी अपील की थी। हालांकि, कोर्ट ने मंडल की याचिका खारिज कर दी थी। बता दें कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले एक धड़े के बाहर चले जाने और फिर बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बना लेने से शिवसेना बंट गई। इस साल फरवरी में चुनाव आयोग ने पार्टी में विभाजन को औपचारिक रूप देते हुए सीएम शिंदे के नेतृत्व वाले अलग गुट को ‘शिवसेना’ नाम और उसका निशान ‘धनुष-बाण’ दे दिया था। जबकि चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट को ‘शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ नाम और निशान ‘जलती मशाल’ आवंटित किया।
उधर, चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ ठाकरे समूह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। इस संबंध में 31 जुलाई को सुनवाई होने की उम्मीद है। यानी आने वाले दिनों में यह मुद्दा गरमाने की संभावना है।
शिवसेना (यूबीटी) ने अपनी याचिका में पार्टी के नाम और चिह्न पर चुनाव आयोग के फरवरी के आदेश को चुनौती दी है। याचिका में दलील दी गई है कि शिवसेना बनाम शिवसेना मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 11 मई के फैसले के मद्देनजर चुनाव आयोग का आदेश पूरी तरह से अवैध है। याचिका में कहा गया है कि चूंकि चुनाव आने वाला है, इसलिए शिंदे गुट अवैध रूप से मूल पार्टी के नाम और प्रतीक का उपयोग कर रहा है, इसलिए याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की गई है।
मालूम हो कि समता पार्टी का जन-आधार घटने के बाद चुनाव आयोग ने उसका चुनाव चिन्ह मशाल फ्रीज कर दिया था। यह चुनाव चिह्न आयोग द्वारा मुंबई के अंधेरी उपचुनाव के दौरान अस्थायी तौर पर ठाकरे समूह को दिया गया था। हालांकि, समता पार्टी ने दावा किया है कि राष्ट्रीय पार्टी का चुनाव चिह्न फ्रीज करने के बाद वह किसी भी पार्टी को नहीं दिया जा सकत है। हालांकि समता पार्टी के पास जब मशाल चिन्ह था तो पार्टी ने कई सालों तक इसका इस्तेमाल नहीं किया। समता पार्टी ने पिछले कई सालों से चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। ऐसे में उन्हें यह चिह्न मिलेगा या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में छह सप्ताह में सुनवाई होगी।