कहानी :
134.57 मिनट फिल्म की शुरुआत कर्नलगंज में एक क्रिकेट मैदान से होती है कि तभी मुख्य अतिथि के तौर पर दबंग और रसूखदार पॉलिटिशन बाबा भंडारी (अक्षय खन्ना) की एंट्री होती है। बस आते ही एक मोहन नाम के लड़के की जबरन शादी करा देता है। बाबा की इस हरकत को एक नामी चैनल के मीडियाकर्मी पप्पू मिश्रा (प्रियांक शर्मा) पूरी तरह से एक्सपोज़ करता है। तभी वह अपने गांव कर्नलगंज छुट्टियों में आता है और रास्ते से ही उसका किडनैप हो जाता, ताकि उसकी शादी मंदिरा (रीवा किशन) से कराई जा सके। दरअसल, मंदिरा के घर वाले राकेश बेदी और उसका परिवार उसकी शादी को लेकर पहले से परेशान चल रहे थे। उधर किडनैक हुए पप्पू को यह तक पता नहीं होता कि उसकी शादी किससे होने वाली है और इधर मंदिरा भी उसे देखने की चाहत लेकर पप्पू के पास नाश्ता और खाना देने आती है। लेकिन मंदिरा अपनी असली पहचान पप्पू के सामने छिपा ले जाती है। वहीं रात को कोठारी के भागने की फिराक में पप्पू बाबा कर आदमियों को अपनी कहानी सुनाता है, जो पीछे से चुपचाप मंदिरा भी सुन लेती है। अब मंदिरा ही बाबा की कैद से पप्पू को भगा देती है और वह रात के अंधेरे में अपने घर आ जाता है। वहीं दूसरी ओर बाबा के डर से पप्पू के घर वाले मिश्रा जी (सतीश कौशिक), इमारती देवी (सुप्रिया पाठक) पप्पू को दिल्ली भगाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचते है कि वहीं पर मंदिरा को पप्पू की सच्चाई पता चलती है और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है, जबकि अब बाबा भी किसी भी कीमत पर मंदिरा को पाना चाहता है। इसी के साथ फिल्म में ट्विस्ट आता है और कहानी आगे बढ़ती है।
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अभिनय :
अक्षय खन्ना ने अपनी पुरानी फिल्मों की तरह इसमें भी पूरी एनर्जी के साथ काम करने का भरसक प्रयास किया है। उन्होंने फिल्म के किरदार को बखूबी जीने की कोशिश की है, जिसमें वे कई मायनों में सफल होते नजर आए। इनके अलावा इंडस्ट्री से पहली बार रूबरू हुए प्रियांक शर्मा ने अपनी इस फिल्म से साबित कर दिखाया है कि एक कलाकार के लिए कोई भी किरदार मुश्किल नहीं होता। वहीं मंझे हुए अभिनेता व नेता रवि किशन की बेटी रीवा किशन ने भी अपनी पहली ही फिल्म से खुद को साबित करने का पूरा प्रयास किया है। बहरहाल, सतीश कौशिक, सुप्रिया पाठक समेत राकेश बेदी ने फिल्म में जहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी, वहीं अपनी स्पेशल अपीयरेंस में श्रेया सरन ने लोगों के जहन में अपनी अलग जगह बनाने की पूरी कोशिश की है।
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निर्देशन :
करण विश्वनाथ कश्यप ने हमेशा की तरह ही इस बार भी अपने निर्देशन में कुछ अलग कर दिखाने की पूरी कोशिश की है। करण ने एक कॉमेडी हैप्पी फिल्म के बारे में जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही उन्होंने अपने निर्देशन में कर भी किया है। करण ने इस बार नया हथकंडा अपनाने का भरसक प्रयास किया और उन्होंने कॉमेडी ड्रामे को आकर्षित बनाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। इसके बावजूद करण ऑडियंस को फिल्म से बांधे रखने में पूरी तरह से सफल नहीं हो सके। हालांकि फिल्म में उन्होंने कॉमेडी का धमाकेदार तड़का तो उन्होंने जरूर लगाया, लेकिन कहीं-कहीं वे असफल से रहे। उन्होंने निर्देशन में वाकई में कुछ अलग करने की कोशिश की है, जिसकी चलते वे ऑडियंस की प्रसंशा लूटने में कहीं-कहीं पर थोड़ा सफल रहे। खैर, फिल्म के फर्स्ट हाफ में तो दर्शक खुद को कुर्सी से कुछ हद तक बांधे दिखाई देते हैं, जबकि इंटरवल के बाद ऑडिएंस का मूड हैप्पी सा नजर नहीं आता। बहरहाल, ‘ जबरदस्ती की नींव पर भला कौन अपनी गृहस्ती चला सकता है…’ और ‘ आराम से रहोगे तो मेहमान समझेंगे, परेशान करोगे तो जान ले लेंगे’ जैसे कुछ एक डायलॉग्स तारीफ लायक रहे, लेकिन अगर टेक्नोलॉजी और कॉमर्शिल लहजे की बात छोड़ दी जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी में कुछ और खास करने की जरूरत भी नजर आई। इसके अलावा जरूरत के मुताबिक फिल्म में संगीत (हर्षित सक्सेना) ने ऑडियंस को आकर्षित करने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाई।
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क्यों देखें :
इंडस्ट्री की नई जोड़ी और कॉमेडी ड्रामा जैसी कुछ हद तक एक हैप्पी फिल्म को देखने की चाहत रखने वाले फिल्म देखने जा सकते हैं। जबकि अक्षय खन्ना के स्टाइल में कुछ अलग भी देखा जा सकता है, आगे इच्छा, समय और जेब आपकी…