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पिता-पुत्री के प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं लेकिन… बॉम्बे HC ने सुनाया मां के पक्ष में फैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला को अपनी बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति देते हुए कहा ‘‘एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है।’’ जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि एक ओर पिता है, जो अपनी बेटी के दूसरी जगह जाने से खुश नहीं है, जबकि दूसरी ओर बच्ची की मां है जो दूसरे देश में नौकरी करके आगे बढ़ने की चाहत रखती है।

मुंबईJul 13, 2022 / 09:11 pm

Dinesh Dubey

Nothing is greater than love between a daughter and her father

प्रतीकात्मक फोटो

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि एक बेटी और उसके पिता के बीच के प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है लेकिन कोर्ट किसी महिला के करियर की संभावनाओं से इनकार नहीं कर सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसके बाद मां के पक्ष में निर्णय सुना दिया।
जानकारी के मुताबिक, महिला और उसके पति के बीच वैवाहिक विवाद चल रहा है। जबकि महिला अपनी बेटी को पोलैंड ले जाना चाहती है, लेकिन उसका पति यानी लड़की का पिता इसका विरोध कर रहा है। जिसके बाद यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की चौखट पर पहुंचा।
जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने आठ जुलाई को इस संबंध में एक आदेश जारी किया था। लेकिन आदेश की कॉपी बुधवार को जारी की गई। जिसके मुताबिक महिला को अपनी नौ साल की बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति दे दी गई. लेकिन कोर्ट ने महिला को बच्ची के पिता से मिलवाने या संपर्क करवाने का भी निर्देश दिया है।

कोर्ट ने क्या कहा?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला को अपनी बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति देते हुए कहा ‘‘एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है।’’ जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि एक ओर पिता है, जो अपनी बेटी के दूसरी जगह जाने से खुश नहीं है, जबकि दूसरी ओर बच्ची की मां है जो दूसरे देश में नौकरी करके आगे बढ़ने की चाहत रखती है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि बच्ची की जिम्मेदारी अब तक मां के कंधे पर ही थी, जिसने अकेले उसकी परवरिश की है। जस्टिस डांगरे ने यहाँ भी कहा कि बच्ची की बढ़ती उम्र को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि वह अपनी मां के साथ ही रहे।
जस्टिस डांगरे ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि कोर्ट एक मां की नौकरी की संभावनाओं से इनकार कर सकती है, जो नौकरी करने की इच्छुक है और उसे इस अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। जरूरी है कि मां और पिता के हितों के बीच एक संतुलन कायम किया जाए और बच्ची के कल्याण पर भी गौर किया जाए।’’
अपना निर्णय सुनाते हुए उन्होंने महिला को बच्ची को स्कूल की छुट्टियों के दौरान भारत लाने और प्रतिदिन उसके पिता से मिलवाने तथा बातचीत कराने का आदेश दिया।


क्या था मामला?

बॉम्बे हाईकोर्ट में एक महिला ने याचिका दायर कर अपनी बच्ची के साथ पोलैंड में रहने की इजाजत मांगी थी, जहां उसे नई नौकरी भी मिल गई है। जबकि बच्ची के पिता ने इसका विरोध करते हुए दलील दी कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे जंग से पोलैंड में भी स्थिति अशांत है। साथ ही कहा कि विदेश जाकर उनकी बेटी सहजता से नहीं रह सकेगी। हालांकि कोर्ट ने पिता की इन दलीलों को दरकिनार कर दिया और महिला के पक्ष में फैसला सुनाया।

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