मराठा आरक्षण आंदोलन के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे मनोज जरांगे राज्य सरकार द्वारा मांगे नहीं माने जाने के कारण जालना जिले में अपने गांव अंतरवाली सराटी गांव में 20 जुलाई से भूख हड़ताल कर रहे थे। इस दौरान उनकी सेहत खराब होती जा रही थी।
‘मरते दम तक अनशन करने को तैयार हूं..’
दरअसल मनोज जरांगे कि तबीयत बिगड़ने की वजह से ग्रामीणों और समर्थकों ने उनसे अनशन खत्म करने और इलाज कराने का आग्रह किया था। इसके बाद आज पांचवें दिन मनोज जरांगे ने अपनी भूख हड़ताल खत्म करने की घोषणा की।
उन्होंने कहा, मैं बिना इलाज और सलाइन के मरते दम तक अनशन करने को तैयार हूं। लेकिन सलाइन लगाकर अनशन करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए मैं अपना अनशन स्थगित कर रहा हूं। लेकिन मैं सरकार को 13 अगस्त तक का समय दे रह हूँ, तब तक उन्हें हमारी सभी मांगें मान लेनी चाहिए।
‘BJP को सत्ता में मत आने देना…’
मीडिया से बातचीत करते हुए मनोज जरांगे ने कहा, इस जगह पड़े रहने से बेहतर है कि अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी जाए। सरकार की जिस सत्ता और कुर्सी में जान बसती है, उसके लिए हमें तैयारी शुरू कर देनी चाहिए… मैं मराठा समाज से एक ही बात कहता हूं कि बीजेपी को कभी सत्ता में मत आने देना। इसलिए मुझे यहां इलाज कराकर अनशन करने की बजाय एक-दो दिन इलाज कराकर आगामी चुनाव की तैयारी में लग जाना चाहिए। मनोज जरांगे ने पहले ही कहा है कि अगर मांगें नहीं मानी गई तो आगामी विधानसभा चुनाव में मराठा समाज अपने प्रत्याशी उतारेगा। मालूम हो कि मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जरांगे ने 13 जून को अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल खत्म की थी। उन्होंने राज्य सरकार के आश्वासन के बाद छठवें दिन अनशन तोड़ा था। तब उन्होंने मांग के मुताबिक मराठा आरक्षण लागू करने के लिए एक महीने का अल्टीमेटम भी दिया था।
26 फरवरी से मराठा आरक्षण लागू
मालूम हो कि महाराष्ट्र विधानमंडल ने 20 फरवरी को एक-दिवसीय विशेष सत्र के दौरान सर्वसम्मति से एक अलग श्रेणी के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया। बाद में राज्यपाल रमेश बैस के हस्ताक्षर के बाद राज्य में मराठा आरक्षण 26 फरवरी से लागू हो गया।
क्या है मांग?
लेकिन मराठा आंदोलन के अगुवा मनोज जरांगे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत पूरे मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग पर अड़े हुए हैं। जरांगे मांग कर रहे हैं कि सभी मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी किए जाएं, जिससे वे आरक्षण के दायरे में आ सकें। साथ ही कुनबी मराठों के सगे सोयरे यानी ‘रक्त संबंधियों’ को भी आरक्षण का लाभ देने की शर्त रखी है। जरांगे ने साफ कहा है कि सगे सोयरे को ओबीसी कोटे के तहत कुनबी के तौर पर ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। कुनबी एक कृषि समूह है जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आता है। वहीँ, सगे सोयरे को मराठी में परिवार के रिलेटिव के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
गौरतलब हो कि महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम लागू किया था जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने का प्रावधान था। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे हरी झंडी दे दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया था।