बता दें कि प्रदूषित राज्य में महाराष्ट्र देश में 15वें नंबर पर है। गुरुवार को हुए वेबिनार में महाराष्ट्र में वायु में बढ़ते प्रदूषण स्तर पर बात किया गया। वेबिनार में प्रस्तुत किए गए एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के डेटा के मुताबिक, साल 1998 में सबसे प्रदूषक कण पीएम 2.5 औसतन 20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से भी कम था, लेकिन साल 2020 में बढ़कर 38 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुंच गया है।
सूचकांक के मुताबिक, यदि महाराष्ट्र वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा पीएम 2.5 की तय मानक औसतन 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की रेखा तक पहुंच जाता है, तो यहां के प्रत्येक नागरिक की जिंदगी 3.3 प्रतिशत बढ़ जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण के स्तर में इस कमी को हासिल करने के लिए सभी क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। उद्योग, बिजली संयंत्र, परिवहन, अपशिष्ट प्रबंधन, निर्माण, खाना पकाने के साफ-सुथरे विकल्प से लेकर धूल नियंत्रण तक सभी कुछ शामिल हैं।
जीवनकाल घटा दोगुना: बता दें कि एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक, वायु में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से पिछले दो दशकों में महाराष्ट्र के लोगों के जीने की आयु भी कम हो गई है। साल 1998 में राज्य में जीवनकाल में औसत कमी 2 साल थी, जो 2020 में बढ़कर 4 साल तक पहुंच गई है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिलहाल महाराष्ट्र में प्रदूषण की कारण एक इंसान की जिंदगी चार साल कम हो गई है।
पल्मोनोलॉजिस्ट और एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ लैंसलॉट पिंटो ने बताया कि प्रदूषक कण पीएम 2.5 का श्वसन रोग के साथ क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी बीमारियों से जुड़ा हुआ है, जो देश में मृत्यु का तीसरी मुख्य वजह है। इसके साथ ही युवाओं में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऑर्डर और हार्ट अटैक की एक वजह भी यह प्रदूषक कण भी हो सकता है।