पुराणों के अनुसार इस मंदिर को पांडवों ने अपने वनवास के समय बनवाया। उन्होंने सतपुरा पर्वतों में एकवीरा माता को एक गुफा में स्थापना की थी। वे इन्हें भगवती जीवदानी कहते थे। पांडवों ने उस समय इस मंदिर के आसपास संतो, ऋषियों और मुनियों के लिए कई गुफाओं का निर्माण किया था। तब से इस क्षेत्र को पांडव डोंगरी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस मंदिर से कई और भी किदवंतियां जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति ने राजा दक्ष की पूजा में भगवान शिव के अपमान पर अपने शरीर को हवन की अग्नि में तर्पण कर
दिया था।
भगवान शिव आदिशक्ति के शरीर को लेकर जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में विभाजन कर दिए थे। माता आदिशक्ति के टुकड़े जहां गिरे थे वह जगह शक्ति पीठ बन गई। जीवदानी माता भी महाराष्ट्र के 18 शक्ति पीठों में से एक हैं। स्थानीय लोग एक और मंदिर से जुड़ी कहानी का जिक्र करते हंै। गांव का एक महार था जो अछूत कहलाता था। महार इसी पहाड़ी के नीचे अपनी गाय चराता था। महार की गायों के साथ एक और भी गाय घास चरने आती थी लेकिन शाम होते ही गायब हो जाती थी। एक दिन महार ने गाय के मालिक को ढूंढ़ते हुए गाय के पीछे पहाड़ पर चला गया। गाय पहाड़ पर चढ़ते ही गायब हो गई। तभी वहां एक देवी प्रकट हुई, महार ने देवी से रोज गाय चराने पर पैसे मांगे। महार की बात सुन देवी ने उसे दान में कोयला दिया। महार ने नाराज होकर कोयले को जमीन पर फेंक दिया। महार ने जब यह बात गांव के लोगों को बताया तो लोगों ने कहा कोयला शुभ होता है। देवी मां ने उसे मोक्ष प्रदान किया और बताया की वह गाय कामधेनु है जो उसे मोक्ष प्रदान करेगी।
17 सदी से जुड़ा है मंदिर
स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले इस क्षेत्र में 17 सदी में जीवदानी किले का निर्माण किया गया था। उस समय किले में अनेकों पानी के कुंड हुआ करते थे। वर्तमान में अधिकतम कुंड अभी सुख गए हंै। इसी किले के एक हिस्से में जीवदानी माता का मंदिर स्थापित किया गया था। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 13 सौ सीढिय़ां चढऩी पड़ती है। सीढ़ी न चढ़ पाने वाले भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए एक रोपवे लगाया गया है। जीवदानी माता मंदिर परिसर में कई देवी देवताओं के मंदिरों की स्थापना की गई है। नवरात्र और दशहरा यहां के मुख्य समारोह हैं। भक्त मन्नत पर सीढ़ी पर दीपक या मोमबत्ती जलाकर पूजा करते हैं। भक्त देवी को मिठाई, कंगन, सिन्दूर, नारियल चढ़ाते हैं। मनोकामना पूर्ण करने के लिए भक्त सीढिय़ों पर नंगे पैर चढ़ते हंै। रविवार का दिन जीवदानी माता का विशेष दिन माना जाता है।