scriptआस्था के शीर्ष पर विरार का जीवदानी माता मंदिर | Jivadani Mata Temple of Virar on the top of the faith | Patrika News
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आस्था के शीर्ष पर विरार का जीवदानी माता मंदिर

ऊंचे पहाड़ों पर विराजमान हंै कृपालु जीवदानी मातामंदिर वैतरणा नदी के किनारे और सातपुरा पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है

मुंबईApr 08, 2019 / 10:54 pm

Chandra Prakash sain

Mumbai news

आस्था के शीर्ष पर विरार का जीवदानी माता मंदिर


विरार. पालघर जिले विरार के पूर्व में आस्था के शीर्ष पर जीवदानी माता का मंदिर विराजमान है। कभी इस शहर का नाम एक-वीरा था। इसी वजह से इस मंदिर को भी एकविरा देवी के नाम से जाना जाता था, परन्तु मुगलों और पुर्तगालियों के हमले में मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया था। तब कुछ स्थानीय लोग माता के दर्शन करने आते थे, उन्हीं सभी श्रद्धालुओं की आस्था की लौ आज प्रज्जवलित होती चली गई। मंदिर वैतरणा नदी के किनारे और सातपुरा पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है। वर्तमान में लोग जीवदानी माता के नाम से जानते हैं।
जीवदानी का अर्थ है जीवन देने वाली माता होता है। जानकारों के मुताबिक इस सतपुरा पहाडिय़ों की शृंखला में पहले जीवन दायी औषधियां मिलती थी। इन औषधियों से लोगों की प्राण रक्षा होती थी, इसलिए एक मान्यता यह भी है कि इसी वजह से माता का नाम जीवदानी पड़ा गया। तब से लोग इन्हें जीवदानी माता कहने लगे।

पुराणों के अनुसार इस मंदिर को पांडवों ने अपने वनवास के समय बनवाया। उन्होंने सतपुरा पर्वतों में एकवीरा माता को एक गुफा में स्थापना की थी। वे इन्हें भगवती जीवदानी कहते थे। पांडवों ने उस समय इस मंदिर के आसपास संतो, ऋषियों और मुनियों के लिए कई गुफाओं का निर्माण किया था। तब से इस क्षेत्र को पांडव डोंगरी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस मंदिर से कई और भी किदवंतियां जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति ने राजा दक्ष की पूजा में भगवान शिव के अपमान पर अपने शरीर को हवन की अग्नि में तर्पण कर
दिया था।

भगवान शिव आदिशक्ति के शरीर को लेकर जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में विभाजन कर दिए थे। माता आदिशक्ति के टुकड़े जहां गिरे थे वह जगह शक्ति पीठ बन गई। जीवदानी माता भी महाराष्ट्र के 18 शक्ति पीठों में से एक हैं। स्थानीय लोग एक और मंदिर से जुड़ी कहानी का जिक्र करते हंै। गांव का एक महार था जो अछूत कहलाता था। महार इसी पहाड़ी के नीचे अपनी गाय चराता था। महार की गायों के साथ एक और भी गाय घास चरने आती थी लेकिन शाम होते ही गायब हो जाती थी। एक दिन महार ने गाय के मालिक को ढूंढ़ते हुए गाय के पीछे पहाड़ पर चला गया। गाय पहाड़ पर चढ़ते ही गायब हो गई। तभी वहां एक देवी प्रकट हुई, महार ने देवी से रोज गाय चराने पर पैसे मांगे। महार की बात सुन देवी ने उसे दान में कोयला दिया। महार ने नाराज होकर कोयले को जमीन पर फेंक दिया। महार ने जब यह बात गांव के लोगों को बताया तो लोगों ने कहा कोयला शुभ होता है। देवी मां ने उसे मोक्ष प्रदान किया और बताया की वह गाय कामधेनु है जो उसे मोक्ष प्रदान करेगी।

17 सदी से जुड़ा है मंदिर


स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले इस क्षेत्र में 17 सदी में जीवदानी किले का निर्माण किया गया था। उस समय किले में अनेकों पानी के कुंड हुआ करते थे। वर्तमान में अधिकतम कुंड अभी सुख गए हंै। इसी किले के एक हिस्से में जीवदानी माता का मंदिर स्थापित किया गया था। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 13 सौ सीढिय़ां चढऩी पड़ती है। सीढ़ी न चढ़ पाने वाले भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए एक रोपवे लगाया गया है। जीवदानी माता मंदिर परिसर में कई देवी देवताओं के मंदिरों की स्थापना की गई है। नवरात्र और दशहरा यहां के मुख्य समारोह हैं। भक्त मन्नत पर सीढ़ी पर दीपक या मोमबत्ती जलाकर पूजा करते हैं। भक्त देवी को मिठाई, कंगन, सिन्दूर, नारियल चढ़ाते हैं। मनोकामना पूर्ण करने के लिए भक्त सीढिय़ों पर नंगे पैर चढ़ते हंै। रविवार का दिन जीवदानी माता का विशेष दिन माना जाता है।

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