यह स्पेशल कहानी महाराष्ट्र में 74 वर्षीय एक गणेश मूर्ति के मामले के बारे में है, जिसने कभी ‘विसर्जन’ नहीं देखा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि गणेश की मूर्ति लकड़ी की बनी है। गणेश मूर्ति को साल 1948 में महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के भोकर तालुक के पलाज गांव में एक मंदिर में स्थापित किया गया था। इस मूर्ति को 74 सालों तक कभी भी किसी जल निकाय में विसर्जित नहीं किया गया। गणेश भक्त मूर्ति पर विसर्जन को चिह्नित करने के लिए एक धारा से खींचे गए पानी को छिड़कते हैं।
बता दें कि हर साल ग्रामीण गणेश चतुर्थी के अवसर पर मंदिर के पास पंडाल में लकड़ी से बनी गणेश मूर्ति स्थापित करते हैं। इसके बाद 11 दिनों तक अत्यधिक धार्मिक उत्साह के साथ मूर्ति की पूजा करते हैं। 11 वें दिन विसर्जन प्रक्रिया से गुजरने की जगह स्थानीय लोग पास की धारा से मूर्ति पर पानी छिड़कते हैं और लकड़ी से बनी दुर्लभ गणेश मूर्ति को सुरक्षित रखते हैं।
यहां के स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस अनुष्ठान के पीछे एक इतिहास है जिसकी वजह से गणेश मूर्ति का विसर्जन नहीं होता है। साल 1948 में गाँव में संक्रामक रोग तेजी से फैल गए थे, जिसने 30 लोगों की मौत हो गई थी। इस महामारी के दौरान ही गांव में गणेश चतुर्थी पर्व मनाया गया था। ग्रामीणों ने गांव में एक आम मूर्ति स्थापित करने का निर्णय किया। इस तरह वे निर्मल के पास गए और नकाशी कलाकार पोलकोंडा गुंडाजी से संपर्क किया। इसके बाद उन्होंने लकड़ी पर गणेश की मूर्ति को तराश कर ग्रामीणों को दे दिया। ग्रामीणों ने मूर्ति लाकर मंदिर के पास पंडाल में स्थापित कर दी।
गणेश मूर्ति स्थापित करने के बाद गांव में संक्रामक रोग फैलने का कोई निशान नहीं था। इसके बाद यह जल्द ही उन भक्तों के लिए एक पसंदीदा स्थान बन गया। अब यहां बड़ी संख्या में गणेश की मूर्ति को देखने के लिए लोग इकट्ठा होते हैं, जिन्होंने कभी एक भी विसर्जन नहीं देखा है। आयोजकों ने कीटों और मौसम की स्थिति से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए सावधानी बरतते हुए मंदिर में लोहे की आलमारी में मूर्ति को संरक्षित किया है।