दूब या दूर्वा एक प्रकार की घास होती है, जो गणेश पूजन में जरूर रखी जाती है। गणेशजी को अति प्रिय भी है दूर्वा। 21 दूर्वा को एकत्र करके एक गांठ में इसे रखा जाता है। इस प्रकार कुल 21 गांठों को गणेशजी के मस्तक पर चढ़ाया जाता है।
दूब या दूर्वा एक प्रकार की घास होती है, जो गणेश पूजन में जरूर रखी जाती है। गणेशजी को अति प्रिय भी है दूर्वा। 21 दूर्वा को एकत्र करके एक गांठ में इसे रखा जाता है। इस प्रकार कुल 21 गांठों को गणेशजी के मस्तक पर चढ़ाया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दूब की 21 गांठें गणेशजी को चढ़ाने के पीछे क्या कहानी है। आइए जानते हैं पुराणों में उल्लेखित है यह कथा…।
गणेशजी के पेट में हुई जलन तो खिलाई थी दूर्वा
पौराणिक कथा के मुताबिक एक समय में अनलासुर नाम का एक विशाल दैत्य था। इसके कोप और दहशत से तीनों लोकों में त्राही-त्राही मची थी। अनलासुर ऋषि, मुनियों और जनता को जिंदा ही निगल जाता था। इस विशालकाय दैत्य से तंग आकर देवराज इंद्र समेत कई देवी-देवता एकत्र हुए और सभी ने महादेव से प्रार्थना की कि इस दैत्य के आतंक का खात्म करें।
भगवान शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि अनलासुर दैत्य का अंत केवल गणेश ही कर पाएंगे। जब गणेशजी ने अनलासुर दैत्य को निगल लिया तो उनके पेट में काफी जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय करने पर भी पेट की जलन शांत नहीं हो रहा था। तभी कश्यप ऋषि ने दूब की 21 गांठ बनाकर गणेश भगवान को खाने को दे दी। जब गणेशजी ने दूब का सेवन किया तो तुरंत ही उनके पेट की जलन शांत हो गई। इसी के बाद से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाई जाती है।
दूर्वा चढ़ाएं तो बोलें यह मंत्र
गणेश जी को 21 दूर्वा की एक गांठ चढ़ाई जा सकती है। इस दौरान इन 10 मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए। हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए। आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते समय सभी मंत्रों को धारा-प्रवाह बोलना चाहिए।
इस कथा के मुताबिक यह संदेश मिलता है कि पेट के रोग और जलन को शांत करने में दूबा औषधि का काम भी करती है। इसे देखकर ही मानसिक शांति मिलती है। यह कई प्रकार की एंटिबायोटिक दवा का भी काम करती है। इसे देखने और छूने से मन को बेहद शांति का अहसास होता है। वैज्ञानिकों ने भी इस पर कई शोध किए और पाया कि यह कैंसर रोगियों के लिए भी लाभदायक है।
यह भी है खास
1. दूब या दूर्वा का वानस्पतिक नाम cynodon dactylon है। यह पूरे सालभर पनपने वाली घास है।
2.दूब पशुओं के लिए ही नहीं मनुष्यों के लिए भी पौष्टिक आहार का काम करता है।
3. अनेक औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में इसे महाऔषदि कहा गया है।
4.आयुर्वेद में बताया गया है कि इसका स्वाद कसैला और मीठा होता है।
5. पित्त, कब्ज, पेट, यौन रोग, लीवर के रोगों के लिए यह चमत्कारिक औषधि है।
6. इस औषधि में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड पर्याप्त मात्रा में रहता है।
7. इसके एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल गुणों के कारण यह शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर है।
8.इसके सेवन से मनुष्य एक्टिव और एनर्जीयुक्त रहता है। अनिद्रा, थकान, तनाव दूर ही रहते हैं।
9.एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह खुजली, त्वजा पर चकते और एग्जिमा दूर करती है।
10. दूब में हल्दी पीसकर पेस्ट बनाकर त्वचा में लगाने से त्वचा संबंधी समस्या खत्म हो जाती है।
11.महिलाओं में यूरीन संक्रमण में प्रभावकारी उपचार करती है यह औषधि।
12.ल्यूकोरिया, बवासीर आदि की समस्या में भी राहत मिलती है। दही के साथ दूब घास को मिलाकर सेवन करना चाहिए।
13. एनीमिया की समस्या दूर करती है दूब। ब्लड को शुद्ध करके हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाती है।
14. नंगे पैर दूब पर चलने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
15, मिर्गी, हिस्टीरिया आदि मानसिक बीमारी में भी लाभदायक है। दूब के काढ़े से कुल्ला करने से छाले भी मिट जाते हैं।