गन्ना किसानों को 8000 करोड़ का पैकेज देने के बाद हुआ ऐसा खुलासा कि मोदी सरकार के फूले हाथ-पांव
1967 में रिलीज हुई उपकार फ़िल्म में कल्याणजी-आनन्दजी के संगीत निर्देशन में इंदीवर का लिखा गीत जिसे महेंद्र कपूर ने अपनी आवाज से अमर कर दिया। वह आज भी अक्सर सुनाई देती है। इस गीत के बोल बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं आज भी कृषि प्रधान देश के लाखों किसानों को गर्व से भर देता है। लेकिन बदलते दौर में खेती की बदलती तकनीक और सामान ढोने के लिए वाहनों का इस्तेमाल होने से बैलों के भविष्य को लेकर सवालिया निशान खड़े हो गए है। दरअसल, खेती और सामान ढोने के काम में आने वाले बैलों की आवश्यकता कम होने से किसान अब बैलों से किनारा करने लगे हैं। पशुपालक अब गाय को कृत्रिम गर्भाधान करा रहे हैं, जिससे किसानों को बढ़िया नस्ल के गोवंशीय पशुओं की प्रजाति मिल रही है। कृतिम गर्भधारण से पशुपालकों को उच्च प्रजाति के बढ़िया नस्लीय पशु मिलने के साथ ही दूध की गुणवत्ता और दूध में बढोत्तरी जैसे लाभ भी मिल रहे हैं।
सरकार द्वारा पशुपालकों के लिए चलाई जा रही विशेष योजनाओं में कृतिम गर्भाधान कराने की सुविधा दी जा रही है। पशुपालन विभाग द्वारा लगाए जा रहे कैम्पों में बड़ी तादात में पिछले कुछ सालों में पशुपालकों ने गायों को कृतिम गर्भाधान कराया है। पशुपालक जिस तकनीक का इस्तेमाल कर कृतिम गर्भाधान करवा रहे हैं, उस तकनीक में नब्बे प्रतिशत से ज्यादा संभावना बछिया पैदा होने की होती है। पशुपालक भी बछिया को ज्यादा उपयोगी बताते हुए बछड़ो से परहेज कर रहे हैं और पशु पालन विभाग के डॉक्टरों से भी केवल बछिया पैदा करने की शर्त पर ही कृतिम गर्भाधान कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। वर्तमान समय में आवारा गोवंशीय पशुओं की बढ़ती तादात के बाद भी सरकार बैलों की संख्या को नियंत्रित करने की कोशिश में जुटी है।
जनपद के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ब्रजेश कुमार गुप्ता के मुताबिक पशुपालन विभाग कृतिम गर्भाधान तकनीक में ऐसे सीरम का इस्तेमाल कर रहा है,जो बछिया पैदा होने की गारंटी होती है। ब्रजेश कुमार का कहना है की बैलों की बढ़ती तादात के चलते जहां लोगों को मुश्किलें होती हैं। वहीं, अब बैलों का व्यहवारिक इस्तेमाल भी कम हो गया है। ऐसे में आज के समय में बैलों को पालना ज्यादा खर्चीला हो गया है। वहीं, यह अब किसी काम भी नहीं आ रहे हैं। ब्रजेश कुमार स्वीकार करते है की बदलते दौर में अब बैलों की प्रांसगिकता कम होने के चलते उनके भविष्य को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
पशुपालन विभाग के आंकड़ें बताने के लिए काफी है की जल्द ही बैलों से आने वाली पीढ़ी का परिचय महज तस्वीरों से ही हो पायेगा। हीरा-मोती की जोड़ी के किस्से अब कहानियों में पढ़ने को मिलेंगे और भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण माने जाने वाले बैल एक दिन यू ही लुप्त प्रजातियों में शामिल होकर हमेशा के लिए जुदा हो जाएंगे।