दरअसल, संयुक्त राष्ट्र ( United Nation ) की ओर से एक रिपोर्ट जारी किया गया है, जिसमें ये बताया गया है कि बीते एक दशक में अफगानिस्तान ( Afghanistan ) में एक लाख से अधिक लोगों की जान गई है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 वर्षों से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में पिछले 10 वर्षों में एक लाख से अधिक लोग मारे गए या घायल हुए हैं। करीब दस साल पहले अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में मरने वाले आम नागरिकों और हताहतों की संख्या के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी थी।
29 फरवरी को होंगे शांति समझौते पर हस्ताक्षर
आपको बता दें कि अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर अमरीका और तालिबान के बीच कई दौर की वार्ता ( America-Taliban Talk ) पहले हो चुकी है और उम्मीद की जा रही है कि 29 फरवरी को दोनों पक्षों में शांति समझौते को लेकर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
लेकिन उससे पहले ही संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन की ओर से शनिवार को यह रिपोर्ट जारी की गई है। बहरहाल, अमरीका और तालिबान के बीच हिंसा कम करने को लेकर सहमति बनी है जो कि शनिवार से एक सप्ताह के लिए लागू हुआ है।
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माना जा रहा है कि यदि इस एक सप्ताह में अफगानिस्तान में किसी तरह की कोई हिंसात्मक घटना नहीं होती है तो ये माना जाएगा कि तालिबान ने अपने लड़ाकों को नियंत्रित कर लिया है, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो अमरीका के साथ शांति समझौता खटाई में पड़ सकता है।
अमरीकी सैनिकों की हो सकती वापसी!
आपको बता दें कि अमरीका और तालिबान के बीच यदि 29 फरवरी को शांति समझौते पर हस्ताक्षर हो जाते हैं तो इससे ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अमरीकी सैनिकों ( American Troops ) की वापसी संभव है।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ( US President Donald Trump ) कई मौकों पर कह चुके हैं कि वे अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से निकालना चाहते हैं और इसके लिए वे हर संभव कोशिश करेंगे। अब अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव ( UA Presidential Election ) बेहद करीब है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि संभवत: अमरीका-तालिबान में अफगान शांति समझौते पर हस्ताक्षर हो जाए और अमरीकी सैनिकों की स्वदेश वापसी का रास्ता साफ हो जाए।
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अमरीका को उम्मीद है कि 18 वर्षों से चल रहा यह युद्ध समाप्त होगा और उनके सैनिक घर लौट आएंगे। साथ ही अफगानिस्तान अपने देश के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू करेंगे।
बता दें कि 11 सितंबर 2001 को अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ( America World Trade centre ) पर हुए आतंकी हमले में तालिबान का नाम सामने आया था। इससे निपटने के लिए अमरीका ने अफगानिस्तान में सैनिकों की तैनाती की थी। लेकिन 18 साल गुजर जाने के बाद भी अमरीका तालिबान का कमर तोड़ने में नाकाम रहा और अंतत: वार्ता के जरिए समझौता करने को विवाश हुआ है।
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